DNA कुंडली की पैकेजिंग: एक कोशिका में अरबों का समायोजन

डीएनए को हिस्टोन प्रोटीन के चारों ओर लिपटा हुआ न्यूक्लियोसोम आरेख।

DNA कुंडली की पैकेजिंग: एक कोशिका में अरबों का समायोजन

मानव शरीर की प्रत्येक कोशिका में लगभग 2 मीटर लंबा DNA होता है। यह अविश्वसनीय रूप से लंबी आनुवंशिक सामग्री एक माइक्रोमीटर से भी कम व्यास वाले नाभिक में कैसे फिट हो जाती है? इसका उत्तर DNA की जटिल पैकेजिंग (Packaging) प्रक्रिया में निहित है। DNA की यह संगठित व्यवस्था केवल स्थान बचाने के लिए ही नहीं है, बल्कि जीन अभिव्यक्ति के नियमन और DNA प्रतिकृति तथा मरम्मत जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के लिए भी आवश्यक है।


DNA कुंडली की पैकेजिंग की आवश्यकता

DNA कुंडली की पैकेजिंग कई कारणों से महत्वपूर्ण है:

  • स्थान का कुशल उपयोग: DNA अणु कोशिका के लिए बहुत लंबा होता है। यदि इसे पैक न किया जाए, तो यह नाभिक में समा नहीं पाएगा।
  • क्षति से सुरक्षा: संकलित DNA अधिक सुरक्षित होता है और भौतिक या रासायनिक क्षति के प्रति कम संवेदनशील होता है।
  • जीन विनियमन: DNA कुंडली की पैकेजिंग जीन की सक्रियता और निष्क्रियता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। DNA के कुछ क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए पैकेजिंग को ढीला करना पड़ता है, जबकि अन्य क्षेत्रों को कसकर पैक रखा जा सकता है ताकि वे अभिव्यक्त न हों।
  • प्रतिकृति और कोशिका विभाजन: कोशिका विभाजन के दौरान DNA के सही वितरण के लिए इसकी उचित पैकेजिंग अनिवार्य है।

प्रोकैरियोट्स में DNA कुंडली की पैकेजिंग

प्रोकैरियोट्स (जैसे बैक्टीरिया) में नाभिक नहीं होता है। उनका DNA कोशिका द्रव्य में एक अनियमित क्षेत्र में स्थित होता है जिसे न्यूक्लियोइड (Nucleoid) कहते हैं। प्रोकैरियोटिक DNA एक एकल, गोलाकार गुणसूत्र (circular chromosome) होता है।

प्रक्रिया:

प्रोकैरियोटिक DNA कुंडली की पैकेजिंग यूकेरियोट्स जितनी जटिल नहीं होती है। यह मुख्य रूप से सुपरकोइलिंग (Supercoiling) और कुछ न्यूक्लियोइड-एसोसिएटेड प्रोटीन (Nucleoid-associated proteins – NAPs) की मदद से होती है।

  1. सुपरकोइलिंग: DNA अपने ही ऊपर कुंडलित हो जाता है, जिससे “सुपरकॉइल्स” बनते हैं। यह एक कसकर पैक की गई संरचना बनाने में मदद करता है। टोपोआइसोमेरेज (Topoisomerase) जैसे एंजाइम सुपरकोइलिंग की डिग्री को नियंत्रित करते हैं।
  2. न्यूक्लियोइड-एसोसिएटेड प्रोटीन (NAPs): ये छोटे, धनायनी प्रोटीन DNA से जुड़ते हैं और इसे मोड़ने और कॉम्पैक्ट करने में मदद करते हैं। हालांकि, ये प्रोटीन यूकेरियोट्स के हिस्टोन (Histones) जितने संरचित नहीं होते हैं।

यूकेरियोट्स में DNA कुंडली की पैकेजिंग: हिस्टोन और क्रोमेटिन

यूकेरियोट्स में DDNA कुंडली की पैकेजिंग कहीं अधिक जटिल और बहु-स्तरीय होती है, जिसमें हिस्टोन प्रोटीन (Histone proteins) और क्रोमेटिन (Chromatin) संरचनाएं शामिल होती हैं।

1. न्यूक्लियोसोम (Nucleosomes): पैकेजिंग का पहला स्तर

यूकेरियोट्स में DNA कुंडली की पैकेजिंग का पहला और सबसे मूलभूत स्तर न्यूक्लियोसोम का निर्माण है।

DNA कुंडली की पैकेजिंग
  • हिस्टोन प्रोटीन: ये छोटे, धनायनी प्रोटीन होते हैं (जिनमें लाइसीन और आर्जिनिन जैसे धनायनी अमीनो एसिड भरपूर मात्रा में होते हैं) और DNA के ऋणात्मक आवेशित फॉस्फेट बैकबोन से मजबूती से बंधते हैं। हिस्टोन के पांच मुख्य प्रकार होते हैं: H1, H2A, H2B, H3, और H4।
  • न्यूक्लियोसोम कोर कण (Nucleosome Core Particle): दो H2A, दो H2B, दो H3 और दो H4 हिस्टोन प्रोटीन मिलकर एक अष्टक (octamer) बनाते हैं। DNA का लगभग 146 बेस पेयर (bp) इस हिस्टोन अष्टक के चारों ओर लगभग 1.67 बार लिपटा होता है, जिससे न्यूक्लियोसोम कोर कण बनता है।
  • न्यूक्लियोसोम कोर कणों के बीच के DNA को कहा जाता है, जिसकी लंबाई 10-80 bp तक भिन्न हो सकती है। हिस्टोन H1 से जुड़ता है और न्यूक्लियोसोम को एक साथ बांधने में मदद करता है।यह संरचना एक “मनके की माला (beads-on-a-string)” जैसी दिखती है, जहाँ प्रत्येक मनका एक न्यूक्लियोसोम होता है [1]।

2. 30 nm क्रोमेटिन फाइबर (30 nm Chromatin Fiber): पैकेजिंग का दूसरा स्तर

न्यूक्लियोसोम की यह “मनके की माला” संरचना आगे संघनित होकर एक सघन 30 nm (नैनोमीटर) व्यास वाला फाइबर बनाती है। इसे बनाने के दो मुख्य मॉडल प्रस्तावित हैं:

DNA कुंडली की पैकेजिंग
  • सोलेनोइड मॉडल (Solenoid Model): इसमें न्यूक्लियोसोम एक हेलिक्स के रूप में व्यवस्थित होते हैं, जिसमें प्रति मोड़ लगभग छह न्यूक्लियोसोम होते हैं।
  • ज़िग-ज़ैग मॉडल (Zig-Zag Model): इसमें न्यूक्लियोसोम एक ज़िग-ज़ैग पैटर्न में व्यवस्थित होते हैं।हिस्टोन H1 इस 30 nm फाइबर के स्थिरीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है [2]।

3. लूप्स और रोसेट्स (Loops and Rosettes): पैकेजिंग का तीसरा स्तर

30 nm फाइबर आगे बड़े लूप्स में व्यवस्थित होते हैं। ये लूप्स न्यूक्लियर मैट्रिक्स (Nuclear Matrix) या स्केफोल्ड प्रोटीन (Scaffold proteins) से जुड़े होते हैं। ये लूप्स फिर और अधिक संघनित होकर रोसेट जैसी संरचनाएं बनाते हैं। प्रत्येक लूप में लगभग 30,000 से 100,000 बेस पेयर DNA हो सकते हैं।

4. गुणसूत्र (Chromosome) का निर्माण: पैकेजिंग का उच्चतम स्तर

कोशिका विभाजन (विशेषकर मेटाफ़ेज़) के दौरान, ये लूप्स और रोसेट्स अत्यधिक संघनित होकर पहचानने योग्य गुणसूत्र (Chromosomes) बनाते हैं। यह संघनन का उच्चतम स्तर होता है, जिससे DNA की लंबाई लगभग 10,000 गुना कम हो जाती है। कंडेंसिन (Condensin) और कोहेसिन (Cohesin) जैसे गैर-हिस्टोन प्रोटीन गुणसूत्र संघनन और अलगाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


हेटेरोक्रोमेटिन और यूक्रोमेटिन

यूकेरियोटिक गुणसूत्रों के भीतर, क्रोमेटिन दो मुख्य रूपों में मौजूद होता है, जो उनकी संघनन की डिग्री और कार्यात्मक स्थिति पर निर्भर करता है:

  • यूक्रोमेटिन (Euchromatin): यह शिथिल रूप से पैक किया गया क्रोमेटिन है, जो अपेक्षाकृत सक्रिय और ट्रांसक्रिप्शनली रूप से सक्रिय जीन में समृद्ध होता है।
  • हेटेरोक्रोमेटिन (Heterochromatin): यह कसकर पैक किया गया क्रोमेटिन है, जो आमतौर पर जीन-गरीब होता है और ट्रांसक्रिप्शनली रूप से निष्क्रिय होता है। हेटेरोक्रोमेटिन दो प्रकार का होता है:
    • संघटक हेटेरोक्रोमेटिन (Constitutive Heterochromatin): हमेशा संघनित रहता है और मुख्य रूप से दोहराए जाने वाले अनुक्रम होते हैं, जैसे सेंट्रोमीयर (centromeres) और टेलोमीयर (telomeres)।
    • वैकल्पिक हेटेरोक्रोमेटिन (Facultative Heterochromatin): कोशिका प्रकार या विकासात्मक अवस्था के आधार पर संघनित या विसंघनित हो सकता है।

DNA कुंडली की पैकेजिंग का विनियमन

DNA कुंडली की पैकेजिंग एक स्थिर संरचना नहीं है; यह गतिशील है और जीन अभिव्यक्ति, DNA प्रतिकृति और मरम्मत जैसी कोशिकीय प्रक्रियाओं को समायोजित करने के लिए लगातार पुनर्गठित होती रहती है। इस विनियमन में कई प्रक्रियाएं शामिल हैं:

  • हिस्टोन संशोधन (Histone Modifications): हिस्टोन प्रोटीन के N-टर्मिनल टेल पर रासायनिक संशोधन (जैसे एसिटिलीकरण, मिथाइलीकरण, फॉस्फोराइलेशन) क्रोमेटिन संरचना को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, हिस्टोन एसिटिलीकरण क्रोमेटिन को ढीला करता है और जीन सक्रियण को बढ़ावा देता है [3]।
  • क्रोमेटिन रीमॉडेलिंग (Chromatin Remodeling): ATP-निर्भर क्रोमेटिन रीमॉडेलिंग कॉम्प्लेक्स DNA को न्यूक्लियोसोम पर स्लाइड करते हैं, न्यूक्लियोसोम को पुनर्गठित करते हैं, या उन्हें हटा भी सकते हैं, जिससे DNA तक पहुंच नियंत्रित होती है।
  • DNA मिथाइलीकरण (DNA Methylation): DNA बेस (आमतौर पर साइटोसिन) का मिथाइलीकरण जीन को निष्क्रिय करने में भूमिका निभाता है और अक्सर हेटेरोक्रोमेटिन गठन से जुड़ा होता है।

निष्कर्ष

DNA पैकेजिंग जीवन की एक असाधारण इंजीनियरिंग उपलब्धि है। अरबों बेस पेयर DNA को एक सूक्ष्म नाभिक में व्यवस्थित रूप से पैक करने की क्षमता के बिना, यूकेरियोटिक जीवन जैसा कि हम जानते हैं, संभव नहीं होगा। यह जटिल और गतिशील प्रक्रिया न केवल DNA को संगठित करती है बल्कि जीन अभिव्यक्ति और जीनोम की अखंडता को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण नियामक तंत्र के रूप में भी कार्य करती है। इस प्रक्रिया को समझना आनुवंशिक रोगों, कैंसर और विकासवादी जीव विज्ञान में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।


सारणी: प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक DNA पैकेजिंग में मुख्य अंतर

विशेषताप्रोकैरियोटिक DNA पैकेजिंगयूकेरियोटिक DNA पैकेजिंग
मुख्य पैकेजिंग प्रोटीनन्यूक्लियोइड-एसोसिएटेड प्रोटीन (NAPs)हिस्टोन प्रोटीन (Histones)
पहला पैकेजिंग स्तरसुपरकोइलिंगन्यूक्लियोसोम (DNA + हिस्टोन ऑक्टामर)
संरचनान्यूक्लियोइड, एकल गोलाकार गुणसूत्रक्रोमेटिन, रेखीय गुणसूत्र
जटिलताअपेक्षाकृत सरलअत्यधिक जटिल और बहु-स्तरीय
गतिशीलताकम गतिशीलअत्यधिक गतिशील, जीन विनियमन के लिए रीमॉडेलिंग होती है
प्रमुख नियामक तंत्रटोपोआइसोमेरेज द्वारा सुपरकोइलिंगहिस्टोन संशोधन, क्रोमेटिन रीमॉडेलिंग, DNA मिथाइलीकरण

DNA पैकेजिंग क्या है और इसकी आवश्यकता क्यों होती है?

DNA पैकेजिंग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा DNA का अत्यधिक लंबा अणु कोशिका के छोटे नाभिक में व्यवस्थित रूप से पैक किया जाता है। इसकी आवश्यकता इसलिए होती है ताकि DNA कोशिका के सीमित स्थान में फिट हो सके, क्षति से सुरक्षित रहे, जीन अभिव्यक्ति को विनियमित किया जा सके, और कोशिका विभाजन के दौरान DNA का सही वितरण सुनिश्चित किया जा सके।

न्यूक्लियोसोम क्या है?

न्यूक्लियोसोम यूकेरियोटिक DNA पैकेजिंग की सबसे बुनियादी इकाई है। यह तब बनता है जब DNA का एक खंड (लगभग 146 बेस पेयर) आठ हिस्टोन प्रोटीन (दो H2A, दो H2B, दो H3 और दो H4) के एक कोर (अष्टक) के चारों ओर लिपट जाता है। इसे “मनके की माला” संरचना का “मनका” माना जा सकता है।

हिस्टोन प्रोटीन क्या होते हैं और वे DNA पैकेजिंग में क्या भूमिका निभाते हैं?

हिस्टोन प्रोटीन छोटे, धनायनी (positively charged) प्रोटीन होते हैं जो यूकेरियोटिक कोशिकाओं में पाए जाते हैं। चूंकि DNA ऋणात्मक रूप से आवेशित होता है, हिस्टोन इसे मजबूती से बांधते हैं। ये DNA को कसकर कुंडलित करके न्यूक्लियोसोम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो DNA पैकेजिंग का पहला स्तर है।

क्रोमेटिन क्या है?

क्रोमेटिन यूकेरियोटिक कोशिकाओं के नाभिक में पाया जाने वाला DNA और प्रोटीन (मुख्यतः हिस्टोन) का एक जटिल होता है। यह DNA पैकेजिंग का रूप है जो DNA को कॉम्पैक्ट करता है और जीन अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है। क्रोमेटिन ढीले या कसकर पैक किए गए रूपों में मौजूद हो सकता है (यूक्रोमेटिन और हेटेरोक्रोमेटिन)।

प्रोकैरियोट्स में DNA की पैकेजिंग कैसे होती है, जो यूकेरियोट्स से कैसे भिन्न है?

प्रोकैरियोट्स में नाभिक नहीं होता है, और उनका DNA कोशिका द्रव्य के न्यूक्लियोइड क्षेत्र में होता है। उनकी DNA पैकेजिंग यूकेरियोट्स जितनी जटिल नहीं होती। यह मुख्य रूप से DNA की सुपरकोइलिंग और न्यूक्लियोइड-एसोसिएटेड प्रोटीन (NAPs) की मदद से होती है, जो हिस्टोन प्रोटीन जैसे संरचित नहीं होते हैं। यूकेरियोट्स में, DNA हिस्टोन के चारों ओर न्यूक्लियोसोम में पैक होता है, जो आगे अधिक जटिल क्रोमेटिन संरचनाएं बनाते हैं।

DNA पैकेजिंग के विभिन्न स्तर क्या हैं?

यूकेरियोट्स में DNA पैकेजिंग कई स्तरों में होती है:
न्यूक्लियोसोम: DNA हिस्टोन अष्टक के चारों ओर लिपटता है (“मनके की माला”)।
30 nm क्रोमेटिन फाइबर: न्यूक्लियोसोम और हिस्टोन H1 एक साथ कॉम्पैक्ट होकर एक सघन फाइबर बनाते हैं।
लूप्स और रोसेट्स: 30 nm फाइबर आगे बड़े लूप्स में व्यवस्थित होते हैं जो स्केफोल्ड प्रोटीन से जुड़े होते हैं।
गुणसूत्र (Chromosome): कोशिका विभाजन के दौरान, ये लूप्स अत्यधिक संघनित होकर मेटाफ़ेज़ गुणसूत्र बनाते हैं।

यूक्रोमेटिन और हेटेरोक्रोमेटिन में क्या अंतर है?

यूक्रोमेटिन (Euchromatin): यह शिथिल रूप से पैक किया गया क्रोमेटिन है, जहाँ जीन आमतौर पर सक्रिय होते हैं और RNA में ट्रांसक्राइब किए जा सकते हैं।
हेटेरोक्रोमेटिन (Heterochromatin): यह कसकर पैक किया गया क्रोमेटिन है, जहाँ जीन आमतौर पर निष्क्रिय होते हैं और RNA में ट्रांसक्राइब नहीं होते हैं। यह गुणसूत्रों के सेंट्रोमीयर और टेलोमीयर जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है।

DNA पैकेजिंग जीन अभिव्यक्ति को कैसे प्रभावित करती है?

DNA पैकेजिंग जीन अभिव्यक्ति को नियंत्रित करती है। जब DNA कसकर पैक होता है (जैसे हेटेरोक्रोमेटिन में), तो ट्रांसक्रिप्शन मशीनरी जीन तक नहीं पहुंच पाती है, जिससे वे निष्क्रिय रहते हैं। जब DNA ढीला होता है (जैसे यूक्रोमेटिन में), तो जीन अधिक सुलभ होते हैं और अभिव्यक्त हो सकते हैं। हिस्टोन संशोधन और क्रोमेटिन रीमॉडेलिंग जैसी प्रक्रियाएं पैकेजिंग को नियंत्रित करके जीन अभिव्यक्ति को विनियमित करती हैं।

DNA पैकेजिंग में हिस्टोन संशोधन की क्या भूमिका है?

हिस्टोन प्रोटीन पर रासायनिक संशोधन (जैसे एसिटिलीकरण, मिथाइलीकरण, फॉस्फोराइलेशन) हिस्टोन और DNA के बीच की बातचीत को बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, हिस्टोन एसिटिलीकरण DNA को हिस्टोन से ढीला करता है, जिससे क्रोमेटिन अधिक खुला हो जाता है और जीन सक्रिय हो जाते हैं।

क्या DNA पैकेजिंग एक स्थिर संरचना है?

नहीं, DNA पैकेजिंग एक स्थिर संरचना नहीं है। यह एक बहुत ही गतिशील प्रक्रिया है जो कोशिका की बदलती जरूरतों के अनुसार लगातार पुनर्गठित होती रहती है। जीन को सक्रिय करने, DNA की प्रतिकृति बनाने, या DNA की मरम्मत करने के लिए क्रोमेटिन संरचना को लगातार ढीला और फिर से कसना पड़ता है।

संदर्भ

  1. Alberts, B. et al. (2014). Molecular Biology of the Cell (6th ed.). Garland Science.
  2. Luger, K. et al. (1997). Crystal structure of the nucleosome core particle at 2.8 A resolution. Nature, 389(6648), 251–260.
  3. Kouzarides, T. (2007). Chromatin modifications and their function. Cell, 128(4), 693-705.
  4. Lodish, H. et al. (2012). Molecular Cell Biology (7th ed.). W. H. Freeman.
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By विक्रम प्रताप

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