अनुलेखन: प्रक्रिया, प्रकार और विनियमन

प्रतिलेखन और अनुवाद: डीएनए से प्रोटीन तक जीन अभिव्यक्ति का आरेख।

1. परिचय: आनुवंशिक सूचना का केंद्रीय सिद्धांत

आणविक जीव विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों में से एक केंद्रीय सिद्धांत (Central Dogma) है, जो कोशिका के भीतर आनुवंशिक सूचना के प्रवाह की दिशा को परिभाषित करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, आनुवंशिक जानकारी DNA से RNA में और फिर RNA से प्रोटीन में प्रवाहित होती है। यह अनुक्रम जीवन के सभी ज्ञात रूपों में मौलिक है और कोशिका के भीतर आनुवंशिक जानकारी के भंडारण, अभिव्यक्ति और संचरण के लिए एक मूलभूत ढाँचा प्रदान करता है। DNA आनुवंशिक जानकारी का स्थायी और स्थिर भंडार है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी आनुवंशिक गुणों को ले जाता है। RNA, विशेष रूप से मैसेंजर RNA (mRNA), इस जानकारी को DNA से प्रोटीन संश्लेषण के स्थलों (राइबोसोम) तक ले जाने वाले एक मध्यस्थ अणु के रूप में कार्य करता है। प्रोटीन अंततः कोशिका के अधिकांश संरचनात्मक, उत्प्रेरक और नियामक कार्यों को अंजाम देते हैं, जिससे कोशिका की पहचान और कार्यप्रणाली निर्धारित होती है।

अनुलेखन (Transcription) वह महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो DNA में निहित आनुवंशिक जानकारी को एक कार्यात्मक RNA अणु (जैसे mRNA, tRNA, rRNA) में परिवर्तित करती है 1। यह जीन अभिव्यक्ति का पहला और सबसे महत्वपूर्ण नियामक बिंदु है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि कौन से जीन और किस हद तक व्यक्त किए जाएंगे। अनुलेखन के माध्यम से, कोशिका विशिष्ट समय पर और विशिष्ट मात्रा में आवश्यक प्रोटीन या कार्यात्मक RNA अणुओं का उत्पादन करने की क्षमता प्राप्त करती है। यह क्षमता कोशिका को बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन करने, विकास और विभेदन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने और अपने आंतरिक संतुलन (होमोस्टैसिस) को बनाए रखने में सक्षम बनाती है।

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अनुलेखन केंद्रीय सिद्धांत का एक अनिवार्य घटक है, जो आनुवंशिक सूचना के DNA से RNA में स्थानांतरण को संभव बनाता है। अनुलेखन की दक्षता और नियमन सीधे कोशिका की प्रोटीन संश्लेषण क्षमता और अंततः उसके कार्य और अनुकूलन क्षमता को प्रभावित करता है। यदि अनुलेखन ठीक से नियंत्रित नहीं होता है, तो कोशिका या तो बहुत अधिक या बहुत कम प्रोटीन का उत्पादन कर सकती है, जिससे शिथिलता या रोग हो सकता है। अनुलेखन को DNA से RNA के निर्माण के रूप में परिभाषित किया गया है 1। RNA, विशेषकर mRNA, फिर प्रोटीन में अनुवादित होता है, जो कोशिका के कार्य के लिए आवश्यक हैं 4। इस प्रकार, अनुलेखन जीन अभिव्यक्ति का प्रारंभिक और निर्णायक कदम है। यदि अनुलेखन की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी होती है—उदाहरण के लिए, गलत जीन का अनुलेखन, गलत समय पर अनुलेखन, या आवश्यक मात्रा से अधिक या कम RNA का उत्पादन—तो इसका सीधा प्रभाव बनने वाले RNA की मात्रा और प्रकार पर पड़ेगा। गलत या अनुपयोगी RNA का उत्पादन प्रोटीन संश्लेषण को बाधित करेगा, जिससे गलत या गैर-कार्यात्मक प्रोटीन बनेंगे, या आवश्यक प्रोटीन बिल्कुल नहीं बनेंगे। यह अंततः कोशिका के सामान्य शारीरिक कार्यों को बाधित करेगा, जिससे विभिन्न रोग (जैसे कैंसर, आनुवंशिक विकार) या विकासात्मक असामान्यताएं हो सकती हैं। इसलिए, अनुलेखन का सटीक और कसकर नियंत्रित नियमन कोशिका के अस्तित्व, स्वास्थ्य और कार्यप्रणाली के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

2. अनुलेखन: परिभाषा और जैविक महत्व

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अनुलेखन (Transcription) वह मौलिक जैविक प्रक्रिया है जिसमें DNA टेम्पलेट (साँचे) का उपयोग करके एक पूरक RNA अणु का संश्लेषण होता है 1। इस प्रक्रिया में, DNA में संग्रहित आनुवंशिक जानकारी को नाइट्रोजन युक्त क्षारों के बीच पाई जाने वाली पूरकता के आधार पर एक एकल-रज्जुक RNA अणु में प्रतिलिपि तैयार किया जाता है 1। यह DNA की द्वि-कुंडली संरचना से एक एकल-कुंडली RNA धागा बनाने की क्रिया है 2। एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि DNA में थायमीन (T) होता है, जबकि बनने वाले RNA में थायमीन की जगह यूरेसिल (U) पाया जाता है 2। यह परिवर्तन RNA को DNA से अलग पहचान देता है और RNA-विशिष्ट कार्यों में मदद करता है। अनुलेखन को प्रोटीन संश्लेषण का प्रथम चरण माना जाता है 3, जिसके बाद अनुवाद (Translation) की प्रक्रिया होती है।

अनुलेखन आनुवंशिक सूचना को DNA से क्रियाशील मैसेंजर RNA (mRNA) में स्थानांतरित करने का प्राथमिक माध्यम है 5। यह mRNA फिर प्रोटीन के निर्माण के लिए एक टेम्पलेट के रूप में कार्य करता है। कोशिका में अनुलेखन का स्थान जीव के प्रकार के आधार पर भिन्न होता है:

  • प्रोकैरियोट्स (Prokaryotes) में: कोई वास्तविक केन्द्रक नहीं होता है, जिसके कारण उनका DNA कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) में रहता है। परिणामस्वरूप, अनुलेखन की प्रक्रिया कोशिका द्रव्य में ही होती है 1। यह स्थानिक निकटता अनुलेखन और अनुवाद को एक साथ होने की अनुमति देती है, जिसे युग्मित अनुलेखन-अनुवाद (Coupled Transcription-Translation) कहा जाता है 7
  • यूकैरियोट्स (Eukaryotes) में: अनुलेखन केंद्रक (Nucleus) के अंदर होता है, जहाँ DNA स्थित होता है 7। अनुलेखन के उत्पाद (प्राथमिक RNA प्रतिलेख, जैसे hnRNA) को फिर परमाणु छिद्रों (Nuclear Pores) के माध्यम से कोशिका द्रव्य में स्थानांतरित होने से पहले विभिन्न प्रसंस्करण चरणों से गुजरना पड़ता है 7

प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स में अनुलेखन के कोशिकीय स्थान का अंतर — कोशिका द्रव्य बनाम केंद्रक — जीन अभिव्यक्ति के नियमन तथा RNA प्रसंस्करण में महत्वपूर्ण भिन्नताओं का कारण बनता है। प्रोकैरियोट्स में, अनुलेखन और अनुवाद एक ही स्थान पर और लगभग साथ-साथ (युग्मित रूप में) संपन्न होते हैं, क्योंकि उनके पास सुव्यवस्थित केंद्रक का अभाव होता है। इसके विपरीत, यूकैरियोट्स में अनुलेखन केंद्रक के भीतर होता है, जबकि अनुवाद कोशिका द्रव्य में संपन्न होता है, जिससे इन दोनों प्रक्रियाओं के मध्य एक स्पष्ट स्थानिक और कालिक पृथक्करण उत्पन्न होता है। यह पृथक्करण RNA के प्रसंस्करण, परिवर्धन (modification) और निर्यात हेतु अतिरिक्त और अधिक जटिल नियंत्रण बिंदु प्रदान करता है। अतः यह अंतर न केवल संगठनात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीन अभिव्यक्ति की जटिलता और लचीलेपन में भी एक मौलिक भूमिका निभाता है।

चूंकि प्रोकैरियोट्स में केंद्रक जैसी कोई झिल्ली-बद्ध संरचना नहीं होती है, DNA कोशिका द्रव्य में स्वतंत्र रूप से मौजूद होता है। जैसे ही RNA पॉलीमरेज़ DNA से RNA का संश्लेषण करता है, राइबोसोम तुरंत नव-निर्मित RNA पर जुड़कर प्रोटीन बनाना शुरू कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को “युग्मित अनुलेखन-अनुवाद” कहा जाता है 7, जो तेजी से जीन अभिव्यक्ति और पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया की अनुमति देता है। यूकैरियोट्स में, DNA केंद्रक के भीतर होता है। RNA बनने के बाद (जिसे प्राथमिक ट्रांसक्रिप्ट या हेटेरोजेनस न्यूक्लियर RNA (hnRNA) कहते हैं), इसे केंद्रक से बाहर कोशिका द्रव्य में अनुवाद के लिए जाने से पहले कई जटिल प्रसंस्करण चरणों (जैसे कैपिंग, स्प्लिसिंग, पॉलीएडेनाइलेशन) से गुजरना पड़ता है 6। यह प्रसंस्करण सुनिश्चित करता है कि केवल कार्यात्मक और परिपक्व mRNA ही कोशिका द्रव्य में अनुवाद के लिए पहुंचे। यह स्थानिक अलगाव यूकैरियोट्स को जीन अभिव्यक्ति के नियमन के लिए अतिरिक्त और अधिक जटिल स्तर प्रदान करता है, जो प्रोकैरियोट्स की तुलना में अधिक जटिल जीव विज्ञान को दर्शाता है। यह जटिलता बहुकोशिकीय जीवों में कोशिका विभेदन, विकास और विशिष्ट कार्यों के लिए जीन अभिव्यक्ति के सटीक नियंत्रण के लिए आवश्यक है।

3. अनुलेखन इकाई और जीन

अनुलेखन इकाई (Transcription Unit) DNA का वह विशिष्ट खंड है जिसे RNA पॉलीमरेज़ द्वारा RNA में प्रतिलेखित किया जाता है 1। इसमें अनुलेखन की शुरुआत, कूटलेखन और समापन के लिए आवश्यक अनुक्रम शामिल होते हैं। एक अनुलेखन इकाई में मुख्यतः तीन भाग होते हैं, जो अनुलेखन प्रक्रिया को नियंत्रित और निर्देशित करते हैं 1:

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  • उन्नायक (Promoter): यह DNA का एक क्षेत्र होता है जो किसी विशेष जीन के अनुलेखन की शुरुआत करता है 1। RNA पॉलीमरेज़ प्रमोटर से विशिष्ट रूप से बंधता है, जो अनुलेखन प्रक्रिया की शुरुआत को संकेत देता है और एंजाइम को सही स्थान पर उन्मुख करता है 1। प्रमोटर स्वयं RNA में प्रतिलेखित नहीं होता है, बल्कि यह एक नियामक क्षेत्र के रूप में कार्य करता है 13
  • संरचनात्मक जीन (Structural Gene): यह अनुलेखन इकाई का वह केंद्रीय हिस्सा होता है जिसे वास्तव में RNA में प्रतिलेखित किया जाता है 10। इसमें वह आनुवंशिक जानकारी होती है जिसका उपयोग एक कार्यशील RNA अणु (जैसे mRNA, tRNA, rRNA) उत्पन्न करने के लिए किया जाएगा। यदि यह mRNA है, तो इसे बाद में प्रोटीन में अनुवादित किया जा सकता है 10। संरचनात्मक जीन DNA के द्वि-रज्जुक का ही भाग है.9
  • समापक (Terminator): यह अनुलेखन इकाई के अंत में एक विशिष्ट DNA अनुक्रम होता है जो RNA पॉलीमरेज़ को संकेत देता है कि वह अनुलेखन रोक दे और DNA से अलग हो जाए 9। यह सुनिश्चित करता है कि RNA अणु की लंबाई सही हो और अनावश्यक अनुलेखन न हो।
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DNA के रज्जुक विपरीत ध्रुवता (Antiparallel) की ओर होते हैं 9। DNA-निर्भर RNA पॉलीमरेज़ राइबोन्यूक्लियोटाइड्स का बहुलकन केवल एक दिशा 5′ से 3′ की ओर उत्प्रेरित करता है 9। अतः, जिस DNA रज्जुक की ध्रुवता 3′ से 5′ की ओर होती है, वह टेम्पलेट (साँचे) के रूप में कार्य करता है, जिस पर पूरक RNA का संश्लेषण होता है 9। DNA का दूसरा 5′ से 3′ ध्रुवता वाला रज्जुक अनुलेखन के समय विस्थापित हो जाता है और इसे कोडिंग रज्जुक (Coding Strand) कहा जाता है, क्योंकि इसका अनुक्रम नव-संश्लेषित RNA के समान होता है (थायमीन के स्थान पर यूरेसिल को छोड़कर) 16

जीन (Gene) DNA का एक कार्यात्मक खंड है जो एक विशिष्ट प्रोटीन या कार्यात्मक RNA अणु के लिए कूट करता है। अनुलेखन इकाई (Transcription Unit) वह खंड है जिसका अनुलेखन होता है, जिसमें जीन के साथ-साथ नियामक अनुक्रम (प्रमोटर और टर्मिनेटर) भी शामिल होते हैं 1। एक अनुलेखन इकाई में एक या एक से अधिक जीन हो सकते हैं:

  • प्रोकैरियोट्स में: एक अनुलेखन इकाई में एक से अधिक जीन हो सकते हैं जो एक एकल mRNA अणु में प्रतिलेखित होते हैं, जिसे पॉलीसिस्ट्रोनिक mRNA (Polycistronic mRNA) कहा जाता है 10। इसका अर्थ है कि एक ही mRNA अणु कई अलग-अलग प्रोटीन के लिए कूट कर सकता है, जो अक्सर एक ही उपापचयी मार्ग में शामिल होते हैं।
  • यूकैरियोट्स में: एक अनुलेखन इकाई में आमतौर पर एक ही जीन शामिल होता है क्योंकि यूकैरियोटिक mRNA मोनोसिस्ट्रोनिक (Monocistronic) होता है 10। इसका मतलब है कि प्रत्येक mRNA अणु केवल एक प्रोटीन के लिए कूट करता है।

प्रमोटर और टर्मिनेटर अनुक्रम स्वयं प्रोटीन के लिए कोड नहीं करते, लेकिन जीन अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक नियामक तत्व हैं। प्रमोटर अनुलेखन की शुरुआत सुनिश्चित करता है, जबकि टर्मिनेटर उसका समापन करता है। यदि प्रमोटर या टर्मिनेटर दोषपूर्ण हों, तो अनुलेखन अनियंत्रित हो सकता है, जिससे ऊर्जा की हानि और गलत RNA का उत्पादन हो सकता है। यह दर्शाता है कि जीन अभिव्यक्ति केवल कूटलेखन अनुक्रमों पर नहीं, बल्कि गैर-कूटलेखन नियामक क्षेत्रों के सटीक नियंत्रण पर भी निर्भर है।

प्रोकैरियोट्स में पॉलीसिस्ट्रोनिक mRNA एक ही नियामक तंत्र के तहत कई संबंधित जीनों की अभिव्यक्ति की अनुमति देता है, जिससे तीव्र और ऊर्जा-कुशल प्रतिक्रिया संभव होती है। उदाहरण: लैकोपेरॉन। इसके विपरीत, यूकैरियोट्स में मोनोसिस्ट्रोनिक mRNA और जटिल RNA प्रसंस्करण प्रत्येक जीन पर स्वतंत्र और बारीक नियंत्रण प्रदान करते हैं। यह बहुकोशिकीयता, विभेदन और विकासात्मक जटिलता के लिए आवश्यक है।

इस प्रकार, जीन संगठन और नियंत्रण का यह अंतर प्रोकैरियोट्स की दक्षता तथा यूकैरियोट्स की जटिलता और लचीलापन—दोनों को दर्शाता है।

4. RNA के प्रकार और उनके कार्य

प्रोटीन संश्लेषण और अन्य कोशिकीय कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले RNA के तीन प्रमुख प्रकार हैं, जिनमें से प्रत्येक की विशिष्ट संरचना और कार्य होते हैं 17:

सन्देशवाहक RNA (mRNA – Messenger RNA):

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  • इनका निर्माण केंद्रक में उपस्थित DNA पर अनुलेखन की क्रिया द्वारा होता है 17। यह DNA से आनुवंशिक सूचना की एक प्रतिलिपि है।
  • ये कोशिका की कुल RNA का अपेक्षाकृत छोटा प्रतिशत (3-5%) होते हैं 17
  • इनका आणविक-भार 500,000 से 2,000,000 डाल्टन तक होता है 17
  • सन् 1961 में फ्रैंसिस जैकब (Francis Jacob) और जैक्यू मोनाड (Jacques Monod) ने इन्हें सन्देशवाहक RNA अणुओं का नाम दिया, क्योंकि वे DNA से राइबोसोम तक आनुवंशिक “संदेश” ले जाते हैं 17
  • सन्देशवाहक RNA अणु केंद्रक से बाहर कोशिकाद्रव्य में आ जाता है। यहाँ यह केंद्रक से प्राप्त आनुवंशिक आदेशों को राइबोसोम पर विभिन्न प्रकार के प्रोटीन बनाने के लिए एक टेम्पलेट (साँचे) के रूप में कार्य करता है 8

राइबोसोमल RNA (rRNA – Ribosomal RNA):

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  • ये RNA के संरचनात्मक (structural) अणु होते हैं और राइबोसोम के मुख्य घटक बनाते हैं 17
  • यह कोशिका की कुल RNA का सर्वाधिक प्रतिशत (लगभग 80%) होता है 17
  • rRNA केंद्रक में DNA से उत्पन्न होता है 17
  • तीनों प्रकार के RNA में यह सर्वाधिक समय तक क्रियाशील रहता है, जो इसकी संरचनात्मक और स्थिर भूमिका को दर्शाता है 17
  • प्रत्येक राइबोसोम का लगभग 65% भाग rRNA का तथा शेष 35% भाग प्रोटीन का होता है 17
  • rRNA राइबोसोम्स की रचना में भाग लेते हैं और प्रोटीन संश्लेषण में उत्प्रेरक (कैटालिटिक) भूमिका निभाते हैं, जिससे अमीनो अम्लों के बीच पेप्टाइड बंधों का निर्माण होता है 8

स्थानान्तरण RNA (tRNA or sRNA – Transfer RNA or soluble RNA):

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  • यह कोशिका की कुल RNA का 15-18% होता है 17
  • यह कोशिकाद्रव्य में पाया जाता है 17
  • ये सबसे छोटे व घुलनशील अणु होते हैं; अतः इन्हें विलेय RNA अणु (soluble RNA molecules) भी कहते हैं 17। इनकी विशिष्ट क्लोवरलीफ जैसी संरचना होती है।
  • इनका निर्माण केंद्रक में DNA के साँचे (DNA template) पर होता है 17
  • tRNA अणु विशिष्ट अमीनो अम्लों को राइबोसोम्स पर लाते हैं, जहाँ mRNA पर मौजूद आनुवंशिक कोडॉन के अनुसार प्रोटीन का संश्लेषण होता है 17। ये आनुवंशिक कोड को “पढ़ने” और उसे विशिष्ट अमीनो अम्ल से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं 8

तीनों प्रकार के RNA — mRNA, rRNA और tRNA — प्रोटीन संश्लेषण में सहक्रियात्मक रूप से कार्य करते हैं। mRNA आनुवंशिक सूचना को DNA से राइबोसोम तक पहुंचाता है, rRNA राइबोसोम का संरचनात्मक और उत्प्रेरक घटक होता है, जबकि tRNA अमीनो अम्लों को mRNA कोडन के अनुसार राइबोसोम तक लाता है। इन तीनों में से किसी एक की अनुपस्थिति या शिथिलता प्रोटीन संश्लेषण को बाधित कर सकती है। यह कोशिका की आणविक मशीनरी में घटकों की परस्पर निर्भरता, संतुलन और संवेदनशीलता को दर्शाता है — जहां प्रत्येक घटक का विशिष्ट कार्य पूरे तंत्र की कार्यप्रणाली के लिए अनिवार्य है।

5. अनुलेखन का प्रक्रम: चरण-दर-चरण व्याख्या

अनुलेखन की प्रक्रिया में DNA-निर्भर RNA पॉलीमरेज़ (DNA-dependent RNA polymerase) नामक एक केंद्रीय एंजाइम की आवश्यकता होती है 1। यह एंजाइम DNA टेम्पलेट पर राइबोन्यूक्लियोटाइड्स को जोड़कर RNA श्रृंखला का संश्लेषण करता है। यह प्रक्रिया तीन मुख्य और विशिष्ट चरणों में पूरी होती है: प्रारंभन, दीर्घीकरण और समापन 1

प्रारंभन (Initiation):

  • अनुलेखन की शुरुआत RNA पॉलीमरेज़ एंजाइम के DNA द्विकुंडलिनी के विशिष्ट प्रमोटर क्षेत्र से जुड़ने से होती है 1
  • प्रोकैरियोट्स में: RNA पॉलीमरेज़ एक विशेष प्रारंभन कारक, जिसे सिग्मा कारक (sigma factor, σ) कहते हैं, से अस्थायी रूप से संबद्ध होकर अनुलेखन को आरंभ करता है 1। सिग्मा कारक RNA पॉलीमरेज़ को प्रमोटर अनुक्रमों को पहचानने और उनसे मजबूती से जुड़ने में मदद करता है, जिससे अनुलेखन की सटीकता सुनिश्चित होती है 15
  • एक बार RNA पॉलीमरेज़ प्रमोटर पर बंध जाता है, तो DNA की दोनों श्रृंखलाएं अलग हो जाती हैं, जिससे अनुलेखन के लिए एक एकल-रज्जुक टेम्पलेट उपलब्ध होता है 16

दीर्घीकरण (Elongation):

  • इस चरण में, RNA पॉलीमरेज़ DNA टेम्पलेट रज्जुक के साथ आगे बढ़ता है और पूरक राइबोन्यूक्लियोटाइड्स को नव-संश्लेषित RNA श्रृंखला में जोड़ता है। RNA पॉलीमरेज़ क्रियाधार के रूप में न्यूक्लियोसाइड ट्राइफॉस्फेट (ATP, UTP, GTP, CTP) का उपयोग करता है 1
  • राइबोन्यूक्लियोटाइड ट्राइफॉस्फेट का मोनोफॉस्फेट में परिवर्तन होता है, और ये अणु फॉस्फोडाइएस्टर बंधों द्वारा जुड़कर RNA पॉलिन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का निर्माण करते हैं 15
  • RNA संश्लेषण केवल एक दिशा 5′ से 3′ की ओर होता है 9। इसका अर्थ है कि नए न्यूक्लियोटाइड हमेशा बढ़ते RNA रज्जुक के 3′ सिरे पर जोड़े जाते हैं।
  • DNA का 3′ से 5′ ध्रुवता वाला रज्जुक टेम्पलेट रज्जुक के रूप में कार्य करता है, जिस पर RNA का संश्लेषण होता है 9। DNA का दूसरा 5′ से 3′ ध्रुवता वाला रज्जुक अनुलेखन के समय विस्थापित हो जाता है और इसे कोडिंग रज्जुक कहा जाता है 16
  • RNA रज्जुक का बनना प्रारंभ होने पर सिग्मा कारक आमतौर पर RNA पॉलीमरेज़ से अलग हो जाता है, जिससे एंजाइम दीर्घीकरण चरण में प्रवेश करता है 16

समापन (Termination):

  • दीर्घीकरण तब तक जारी रहता है जब तक RNA पॉलीमरेज़ DNA टेम्पलेट पर एक विशिष्ट समापन स्थल (termination site) तक नहीं पहुँच जाता 15। इस स्थल पर एक विशिष्ट समापन अनुक्रम (terminator sequence) स्थित होता है।
  • जब RNA पॉलीमरेज़ इस स्थल पर पहुँचता है, तब यह DNA श्रृंखला से अलग हो जाता है और नव-संश्लेषित RNA अणु मुक्त हो जाता है, जिससे RNA का संश्लेषण पूर्ण हो जाता है 16
  • प्रोकैरियोट्स में: mRNA का DNA श्रृंखला से पृथक् होना अक्सर समापन कारक रो (termination factor-rho, ρ) की उपस्थिति के कारण होता है 16। कुछ समापन रो-स्वतंत्र होते हैं, जो RNA में विशिष्ट संरचनाओं के निर्माण पर निर्भर करते हैं।
  • अंत में, DNA खंड अपनी पूर्व द्विकुंडलिनी स्थिति में वापस आ जाता है 16

RNA पॉलीमरेज़ एक बहुक्रियाशील एंजाइम है, जो अनुलेखन के तीनों चरणों—प्रारंभन, दीर्घीकरण और समापन—को उत्प्रेरित करता है। हालांकि, इसकी सटीकता और कार्यप्रणाली सहायक प्रोटीनों जैसे सिग्मा और रो कारकों पर निर्भर करती है। सिग्मा कारक RNA पॉलीमरेज़ को सही प्रमोटर अनुक्रम पहचानने और उससे जुड़ने में सहायता करता है, जिससे अनुलेखन सही स्थान से आरंभ हो सके। समापन के लिए रो कारक RNA को DNA से पृथक करता है और अनुलेखन को समाप्त करता है। इन सहायक कारकों के बिना RNA पॉलीमरेज़ की क्रिया अनियंत्रित या अचूक हो सकती है।

यह दर्शाता है कि एंजाइमों की कार्यक्षमता केवल उनकी संरचना या उत्प्रेरक क्षमता पर नहीं, बल्कि उनके प्रासंगिक प्रोटीन साझेदारों के साथ समन्वय पर आधारित होती है। यह आणविक जीव विज्ञान में “मॉड्यूलरिटी” का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ कोर एंजाइम विभिन्न सहायक इकाइयों के साथ मिलकर पर्यावरणीय या आंतरिक संकेतों के अनुसार अपनी भूमिका को समायोजित कर सकता है। यह लचीलापन कोशिका को जीन अभिव्यक्ति पर सटीक नियंत्रण और अनुकूलन की शक्ति प्रदान करता है, जो जीव की उत्तरजीविता और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। इनके चित्र भी दाएं ओर दिखाई गए है |

प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अनुलेखन की प्रक्रिया में मुख्य समानताओं और अंतरों को समझने के लिए निम्नलिखित तालिका प्रस्तुत की गई है:

तालिका: प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स में अनुलेखन प्रक्रिया के चरणों की तुलना

विशेषताप्रोकैरियोट्सयूकैरियोट्स
अनुलेखन का स्थानकोशिका द्रव्य 1केंद्रक 7
RNA पॉलीमरेज़ की संख्याकेवल एक प्रकार (सभी RNA के लिए) 15तीन प्रकार (RNA Pol I, II, III) 15
प्रारंभन कारकसिग्मा कारक (σ) 1जटिल ट्रांसक्रिप्शन कारक 22
समापन कारकरो (ρ) कारक या रो-स्वतंत्र समापन 16विभिन्न समापन कारक 16
RNA प्रसंस्करण (पश्च-अनुलेखन रूपांतरण)आवश्यकता नहीं 7आवश्यक (कैपिंग, स्प्लिसिंग, पॉलीएडेनाइलेशन) 6
युग्मित अनुलेखन-अनुवादहाँ 7नहीं (स्थानिक अलगाव) 7
mRNA प्रकारपॉलीसिस्ट्रोनिक 10मोनोसिस्ट्रोनिक 10

6. प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स में अनुलेखन का नियमन

जीन अभिव्यक्ति का नियमन कोशिका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार प्रोटीन का उत्पादन कर सके और बदलती परिस्थितियों के अनुकूल हो सके। प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स में अनुलेखन के नियमन तंत्र में महत्वपूर्ण अंतर होते हैं, जो उनकी कोशिकीय संरचना और जीवन शैली को दर्शाते हैं।

प्रोकैरियोट्स में नियमन

प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में, जीन अभिव्यक्ति का नियंत्रण मुख्य रूप से अनुलेखन स्तर पर होता है 21। अनुलेखन तब रुक जाता है जब व्यक्त प्रोटीन की अब आवश्यकता नहीं होती है 21। यह विनियमन कोशिका को आवश्यक जीन उत्पादों का उत्पादन करने और परिवर्तनशील वातावरण के अनुकूल होने का लचीलापन प्रदान करता है 21

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ओपेरॉन मॉडल (Operon Model): प्रोकैरियोटिक जीन विनियमन की एक प्रमुख विशेषता ओपेरॉन मॉडल है 23। एक ओपेरॉन बैक्टीरियल DNA पर अनुक्रम में व्यवस्थित जीनों का एक क्लस्टर है, साथ ही संबंधित विनियामक अनुक्रम भी होते हैं। इन्हें एक ही mRNA अणु के रूप में प्रतिलेखित किया जाता है 23। लैक ओपेरॉन (Lac Operon) लेक्टोज के मेटाबोलिज्म में शामिल एक सुप्रसिद्ध ओपेरॉन है 23। इसकी संकल्पना फ्रैंसिस जैकब और जैक्यू मोनाड ने 1961 में प्रस्तुत की थी 24। एक ओपेरॉन में संरचनात्मक जीन (जो प्रोटीन के लिए कोड करते हैं), प्रमोटर (RNA पॉलीमरेज़ के लिए बंधन स्थल), ऑपरेटर (नियामक प्रोटीन के लिए बंधन स्थल), नियामक जीन (दमनकारी प्रोटीन के लिए कोड करता है), और इन्ड्यूसर (जो दमनकारी को निष्क्रिय करता है) शामिल होते हैं 24। नियामक जीन द्वारा उत्पादित दमनकारी प्रोटीन ऑपरेटर से बंधती है और RNA पॉलीमरेज़ को संरचनात्मक जीन का अनुलेखन करने से रोकती है, जिससे अनुलेखन “स्विच्ड ऑफ” हो जाता है 24। जब एक इन्ड्यूसर (जैसे लैक्टोज) मौजूद होता है, तो यह दमनकारी से बंधता है, जिससे दमनकारी ऑपरेटर से अलग हो जाता है और RNA पॉलीमरेज़ संरचनात्मक जीन का अनुलेखन कर सकता है, जिससे अनुलेखन “स्विच्ड ऑन” हो जाता है 24

प्रमोटर: प्रमोटर DNA का एक अनुक्रम है जिससे RNA पॉलीमरेज़ अनुलेखन शुरू करने के लिए जुड़ता है 23। एक प्रमोटर की शक्ति (RNA पॉलीमरेज़ के प्रति उसकी आत्मीयता) संबंधित जीनों के अनुलेखन की दर को बहुत प्रभावित कर सकती है 23

ट्रांसक्रिप्शन कारक (Transcription Factors): बैक्टीरियल ट्रांसक्रिप्शन कारक, जो सक्रियक (Activators) या प्रतिरोधक (Repressors) हो सकते हैं, जीन अभिव्यक्ति को विनियमित करने में सहायक होते हैं 23। सक्रियक RNA पॉलीमरेज़ को कमजोर प्रमोटरों पर अधिक प्रभावी ढंग से बंधने में मदद करते हैं, जबकि प्रतिरोधक विशिष्ट DNA साइटों (ऑपरेटर) से बंधकर अनुलेखन के आरंभ को अवरुद्ध करते हैं 23

अटेन्यूएशन (Attenuation): यह एक तंत्र है जो विशेष रूप से अमीनो एसिड बायोसिंथेटिक ओपेरॉन में पाया जाता है, जैसे कि बैक्टीरिया में ट्रिपओपेरॉन 23। जब अमीनो एसिड की मात्रा पर्याप्त होती है, तो नव-निर्मित लीडर पेप्टाइड mRNA में एक ट्रांसक्रिप्शनल टर्मिनेटर संरचना का निर्माण करता है, अनुलेखन को जल्दी रोकता है और उस अमीनो एसिड के संश्लेषण के लिए आवश्यक एंजाइमों का संश्लेषण रोकता है 23

यूकैरियोट्स में नियमन

यूकैरियोटिक कोशिकाओं में, जीन अभिव्यक्ति को विभिन्न स्तरों पर नियंत्रित किया जाता है, जो क्रोमैटिन संरचना से लेकर प्रोटीन के पश्च-रूपांतरित बदलावों तक होते हैं 22। अनुलेखन केंद्रक के भीतर होता है, और अनुवाद कोशिका द्रव्य में होता है 7। यूकैरियोट्स में, नियमन इन स्तरों पर लागू किया जा सकता है: (i) अनुलेखन स्तर (प्राथमिक प्रतिलेख का निर्माण), (ii) प्रसंस्करण स्तर (स्प्लिसिंग का नियमन), (iii) mRNA का केंद्रक से साइटोप्लाज्म में परिवहन, और (iv) स्थानांतरण स्तर 21

क्रोमैटिन रीमॉडेलिंग (Chromatin Remodeling): यूकैरियोटिक कोशिकाओं में DNA हिस्टोन प्रोटीनों के चारों ओर कसकर लिपटा होता है, जिससे एक जटिल संरचना बनती है जिसे क्रोमैटिन कहा जाता है 22। क्रोमैटिन की संरचना को बदलकर ट्रांसक्रिप्शन मशीनरी से DNA क्षेत्रों को उजागर या छिपाया जा सकता है, जिससे जीन की पहुंच नियंत्रित होती है 22

अनुलेखन
  • हिस्टोन संशोधन (Histone Modification): हिस्टोन्स को रासायनिक रूप से एसिटाइलेशन (acetylation), मिथाइलेशन (methylation), फॉस्फोरीलेशन (phosphorylation) आदि के द्वारा संशोधित किया जा सकता है 22। उदाहरण के लिए, हिस्टोन्स के एसिटाइलेशन को सामान्यतः ट्रांसक्रिप्शनल सक्रियता से जोड़ा जाता है, जबकि मिथाइलेशन ट्रांसक्रिप्शन को सक्रिय या दबा सकता है, यह संशोधित अमीनो एसिड पर निर्भर करता है 22
  • DNA मिथाइलेशन (DNA Methylation): DNA के साइटोसिन आधारों (cytosine bases) पर मिथाइल समूहों का जुड़ना सामान्यतः ट्रांसक्रिप्शनल दमन से जुड़ा होता है, जिससे जीन अभिव्यक्ति अवरुद्ध होती है 22

ट्रांसक्रिप्शन नियंत्रण (Transcriptional Regulation):

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  • ट्रांसक्रिप्शन कारक (Transcription Factors): ये ऐसे प्रोटीन होते हैं जो जीनोम में विशेष अनुक्रमों से जुड़े होते हैं और RNA पॉलीमरेज़ को जीन प्रमोटर क्षेत्र तक लाने या रोकने में मदद करते हैं, जिससे अनुलेखन की शुरुआत प्रभावित होती है 22
  • एन्हांसर्स और साइलेंसर्स (Enhancers and Silencers): ये DNA अनुक्रम होते हैं जो जीन प्रमोटर से दूर स्थित हो सकते हैं और क्रमशः अनुलेखन को बढ़ावा या दबा सकते हैं 8। ये तीन-आयामी रूप में जीन प्रमोटर के साथ संपर्क स्थापित करके कार्य करते हैं।
  • मीडिएटर कॉम्प्लेक्स (Mediator Complexes): ये ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर्स और RNA पॉलीमरेज़ के बीच एक पुल का काम करते हैं, जिससे एक कार्यशील प्रारंभिक जटिल (pre-initiation complex) का गठन होता है और अनुलेखन की शुरुआत होती है 22

RNA प्रसंस्करण (RNA Processing): यूकैरियोट्स में, प्रारंभिक अनुलेखन (प्राथमिक ट्रांसक्रिप्ट या hnRNA) में एग्जोन (कूटलेखन क्षेत्र) और इंट्रोन (गैर-कूटलेखन क्षेत्र) दोनों होते हैं 7। सक्रिय mRNA उत्पन्न करने के लिए, इस hnRNA को कोशिका द्रव्य में अनुवाद के लिए जाने से पहले कुछ पश्च-अनुलेखन रूपांतरण प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है 6। RNA प्रसंस्करण की क्रिया केंद्रक में होती है 6

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  • स्प्लिसिंग (Splicing): यह प्रक्रिया प्रि-mRNA से इंट्रॉन (गैर-कूटलेखन क्षेत्र) का निष्कासन और एग्जोन (कूटलेखन क्षेत्र) का परस्पर जुड़ना सुनिश्चित करती है 6। इंट्रॉन DNA के गैर-कूटलेखन क्षेत्र होते हैं जो ट्रांसलेशन से पहले हटा दिए जाते हैं, जबकि एग्जोन कूटलेखन क्षेत्र होते हैं जो अंतिम mRNA में रहते हैं और प्रोटीन को कोड करते हैं 26। इंट्रॉन केवल यूकैरियोट्स में पाए जाते हैं, जबकि एग्जोन प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स दोनों में होते हैं 26। वैकल्पिक स्प्लिसिंग (Alternative Splicing) एक ही जीन से विभिन्न प्रोटीन आइसोफॉर्म उत्पन्न करने की अनुमति देती है, जिससे प्रोटीन विविधता बढ़ती है 27
  • कैपिंग (Capping): कैपिंग की क्रिया के दौरान mRNA के 5′ सिरे पर गुआनिलेट अवशिष्टों (guanylate residues) के संघनन द्वारा एक 7-मिथाइलगुआनोसिन टोपी (cap) का निर्माण हो जाता है 6। यह टोपी mRNA के अपघटन को रोकती है, केंद्रक से बाहर आने में मदद करती है, और अनुवाद के लिए राइबोसोम को mRNA से जुड़ने में सहायता करती है 28
  • पॉलीएडेनाइलेशन (Polyadenylation): यह प्रक्रिया mRNA अणुओं के 3′ अंत में पॉली (A) पूंछ (एडेनोसिन न्यूक्लियोटाइड की एक श्रृंखला) के जोड़ को संदर्भित करती है 29। यह पूंछ mRNA के अपघटन को रोकती है, केंद्रक से बाहर आने में मदद करती है, और अनुवाद की दक्षता को प्रभावित करती है 28। पॉली (A) पूंछ की लंबाई सेलुलर प्रक्रियाओं द्वारा कसकर नियंत्रित होती है 29

यूकैरियोट्स में जीन अभिव्यक्ति का नियमन प्रोकैरियोट्स की तुलना में कहीं अधिक जटिल है, जिसमें क्रोमैटिन रीमॉडेलिंग, ट्रांसक्रिप्शन कारक, और RNA प्रसंस्करण (स्प्लिसिंग, कैपिंग, पॉलीएडेनाइलेशन) जैसे कई स्तर शामिल हैं। यह जटिलता बहुकोशिकीय जीवों में कोशिका विभेदन, विकास और पर्यावरणीय प्रतिक्रियाओं के लिए आवश्यक सटीक और बारीक नियंत्रण को दर्शाती है। प्रोकैरियोट्स में जीन नियमन मुख्य रूप से अनुलेखन स्तर पर होता है और ओपेरॉन मॉडल 21 जैसी अपेक्षाकृत सरल प्रणालियों द्वारा नियंत्रित होता है। यूकैरियोट्स में, नियमन अनुलेखन, प्रसंस्करण, mRNA परिवहन और अनुवाद सहित कई स्तरों पर होता है 21। इसमें क्रोमैटिन रीमॉडेलिंग 22 और RNA प्रसंस्करण 6 जैसे अतिरिक्त, जटिल तंत्र शामिल हैं।

यह बहु-स्तरीय नियमन यूकैरियोटिक कोशिकाओं को अत्यधिक विशिष्ट और विभेदित होने की क्षमता प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, एक ही DNA अनुक्रम विभिन्न कोशिका प्रकारों में अलग-अलग तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है, जिससे विभिन्न ऊतकों और अंगों का निर्माण होता है। क्रोमैटिन संरचना को बदलकर, कोशिकाएं कुछ जीनों को अनुलेखन के लिए सुलभ बना सकती हैं जबकि दूसरों को कसकर पैक करके निष्क्रिय रख सकती हैं। ट्रांसक्रिप्शन कारक विशिष्ट जीनों की अभिव्यक्ति को सक्रिय या निष्क्रिय करके बारीक नियंत्रण प्रदान करते हैं। RNA प्रसंस्करण, विशेष रूप से वैकल्पिक स्प्लिसिंग, एक ही जीन से कई अलग-अलग प्रोटीन उत्पन्न करने की अनुमति देता है, जिससे प्रोटीन विविधता और कार्यात्मक जटिलता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। यह जटिलता यूकैरियोटिक जीवों की विकासवादी सफलता और बहुकोशिकीय जीवन के उद्भव के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे वे जटिल विकासात्मक कार्यक्रमों को निष्पादित कर सकते हैं और बदलते वातावरण में अधिक लचीलेपन के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं।

7. निष्कर्ष

अनुलेखन, आणविक जीव विज्ञान के केंद्रीय सिद्धांत का एक मूलभूत स्तंभ है, जो DNA में निहित आनुवंशिक जानकारी को कार्यात्मक RNA अणुओं में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक है। यह प्रक्रिया जीन अभिव्यक्ति के नियमन में एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक बिंदु के रूप में कार्य करती है, जो कोशिका के कार्य, अनुकूलन क्षमता और अंततः जीव के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है। अनुलेखन इकाई की संरचना, जिसमें उन्नायक, संरचनात्मक जीन और समापक शामिल हैं, इस प्रक्रिया की सटीकता और नियंत्रण को सुनिश्चित करती है। प्रमोटर और टर्मिनेटर जैसे गैर-कूटलेखन नियामक क्षेत्र, संरचनात्मक जीन की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे कोशिका की कार्यप्रणाली और पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया की क्षमता बढ़ती है।

RNA के तीन प्रमुख प्रकार – mRNA, rRNA, और tRNA – प्रोटीन संश्लेषण की जटिल मशीनरी में सहक्रियात्मक रूप से कार्य करते हैं। इनमें से प्रत्येक का विशिष्ट और अपरिहार्य कार्य है, और इनकी समन्वित क्रिया ही आनुवंशिक सूचना को कार्यात्मक प्रोटीन में बदलने में सक्षम बनाती है। RNA पॉलीमरेज़, सिग्मा और रो जैसे सहायक कारकों के साथ मिलकर, अनुलेखन के चरणों को सटीकता से उत्प्रेरित करता है, जो आणविक प्रक्रियाओं में मॉड्यूलरिटी और नियामक अंतःक्रिया के महत्व को दर्शाता है।

प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स में अनुलेखन की प्रक्रिया और इसके नियमन तंत्र में महत्वपूर्ण अंतर हैं। प्रोकैरियोट्स में युग्मित अनुलेखन-अनुवाद और ओपेरॉन मॉडल जैसी कुशल प्रणालियाँ तेजी से पर्यावरणीय अनुकूलन को बढ़ावा देती हैं। इसके विपरीत, यूकैरियोट्स में केंद्रक में अनुलेखन, बहु-स्तरीय नियमन (क्रोमैटिन रीमॉडेलिंग, ट्रांसक्रिप्शन कारक, RNA प्रसंस्करण) और मोनोसिस्ट्रोनिक mRNA की उपस्थिति, जीन अभिव्यक्ति पर अधिक बारीक और स्वतंत्र नियंत्रण प्रदान करती है। यह जटिलता बहुकोशिकीयता, कोशिका विभेदन और विकासात्मक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है। कुल मिलाकर, अनुलेखन और इसके संबंधित आणविक प्रक्रम जीवन की मौलिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए केंद्रीय हैं और आनुवंशिक विकारों, कैंसर और संक्रामक रोगों सहित कई जैविक घटनाओं के आणविक आधार को समझने में महत्वपूर्ण हैं। इस गहरी समझ से भविष्य में नई चिकित्सीय रणनीतियों और जैव-तकनीकी अनुप्रयोगों का विकास संभव हो सकता है।

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By विक्रम प्रताप

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