जयशंकर प्रसाद : संवादात्मक जीवन परिचय

जयशंकर प्रसाद का ब्लैक एंड व्हाइट पोर्ट्रेट, विचारशील अभिव्यक्ति।

जीवन यात्रा

जयशंकर प्रसाद का जीवन अल्पावधि का था, फिर भी यह संघर्षों, पारिवारिक त्रासदियों और असाधारण साहित्यिक उपलब्धियों से भरा था। यह टाइमलाइन उनके जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों को दर्शाती है, जिसने उनके व्यक्तित्व और लेखन को आकार दिया।

30 जनवरी को काशी (वाराणसी) के एक प्रतिष्ठित ‘सुँघनी साहू’ परिवार में जन्म।

किशोरावस्था में ही पिता, माता और बड़े भाई का देहांत हो गया, जिससे परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई।

पहली कविता ‘सावक पंचक’, ‘कलाधर’ उपनाम से ‘भारतेंदु’ पत्रिका में प्रकाशित हुई।

‘कानन कुसुम’, खड़ी बोली में उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ।

‘झरना’ का प्रकाशन, जिसे अक्सर ‘छायावाद की प्रथम प्रयोगशाला’ कहा जाता है।

‘स्कंदगुप्त’ (1928), ‘चंद्रगुप्त’ (1931), और ‘ध्रुवस्वामिनी’ (1933) जैसे प्रमुख ऐतिहासिक नाटकों का प्रकाशन।

महाकाव्य ‘कामायनी’ का प्रकाशन, जो आधुनिक हिंदी साहित्य की एक कालजयी कृति मानी जाती है।

15 नवंबर को क्षय रोग से पीड़ित होने के कारण मात्र 48 वर्ष की आयु में वाराणसी में निधन।

साहित्यिक कृतियाँ

प्रसाद जी ने कविता से लेकर नाटक और उपन्यास तक साहित्य की लगभग हर विधा में उत्कृष्ट रचनाएँ कीं। नीचे दिए गए फिल्टर का उपयोग करके उनकी कृतियों के विशाल भंडार का अन्वेषण करें और चार्ट के माध्यम से उनके साहित्यिक योगदान का एक दृश्य अवलोकन प्राप्त करें।

सज्जन

1910 – नाटक

छाया

1912 – कहानी

कानन कुसुम

1913 – काव्य

करुणालय

1913 – नाटक

राज्यश्री

1913 – नाटक

चित्राधार

1918 – काव्य

झरना

1918 – काव्य

विशाख

1921 – नाटक

अजातशत्रु

1921 – नाटक

आँसू

1925 – काव्य

प्रतिध्वनि

1926 – कहानी

कामना

1927 – नाटक

स्कंदगुप्त

1928 – नाटक

कंकाल

1929 – उपन्यास

आकाशदीप

1929 – कहानी

एक घूँट

1930 – नाटक

चंद्रगुप्त

1931 – नाटक

आंधी

1931 – कहानी

लहर

1933 – काव्य

तितली

1934 – उपन्यास

कामायनी

1936 – काव्य

इंद्रजाल

1936 – कहानी

इरावती (अपूर्ण)

1937 – उपन्यास

काव्य और कला

1939 – निबंध

विचारधारा और शैली

जयशंकर प्रसाद का साहित्य केवल कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक गहरे दार्शनिक चिंतन का परिणाम है। उनकी शैली और विचारधारा ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। नीचे उनके साहित्यिक दर्शन के कुछ प्रमुख स्तंभ दिए गए हैं।

छायावादी दर्शन

प्रसाद जी के साहित्य में प्रकृति का मानवीकरण, सौंदर्य-चेतना, वेदना की अनुभूति और रहस्यवाद का गहरा पुट है, जो छायावाद के मूल तत्व हैं।

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

अपने नाटकों के माध्यम से उन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत को प्रस्तुत किया और राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया।

आनंदवाद और समरसता

‘कामायनी’ में उन्होंने शैव दर्शन के ‘आनंदवाद’ को प्रस्तुत किया, जो जीवन में ज्ञान, इच्छा और कर्म के बीच संतुलन और समरसता का संदेश देता है।

मानवीय करुणा

उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं और करुणा की गहरी अभिव्यक्ति मिलती है, जो पाठकों को पात्रों के सुख-दुख से सीधे जोड़ती है।

नारी-चेतना

‘ध्रुवस्वामिनी’ जैसे नाटकों में उन्होंने नारी के अधिकारों, स्वतंत्रता और अस्मिता के प्रश्न को बहुत सशक्त ढंग से उठाया।

परिष्कृत भाषा-शैली

उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान और परिमार्जित है। उन्होंने भाषा में चित्रात्मकता और लाक्षणिकता का अद्भुत प्रयोग किया।

विरासत

मंगलाप्रसाद पारितोषिक

‘कामायनी’ महाकाव्य के लिए

जयशंकर प्रसाद

मात्र 48 वर्ष के अपने छोटे से जीवन में, जयशंकर प्रसाद ने हिंदी साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। उन्हें ‘छायावाद के ब्रह्मा’ के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और पाठकों को भारतीय संस्कृति, दर्शन और मानवीय भावनाओं की गहरी समझ प्रदान करती हैं, और वे हिंदी साहित्य के इतिहास में एक अप्रतिम और चिरस्मरणीय व्यक्तित्व बने रहेंगे।

सन्दर्भ

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By विक्रम प्रताप

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