प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी

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प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी की जीवन यात्रा

प्रोफेसर जी. सुंदर रेड्डी का जन्म आंध्र प्रदेश के बेल्लूर (वतुल्लू पल्ली गाँव) में हुआ था।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और तेलुगु भाषाओं में हुई, जिसने उनके भाषाई ज्ञान की मजबूत नींव रखी।

उच्च शिक्षा हिंदी में प्राप्त करने के बाद, वे लगभग 30 वर्षों तक आंध्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अध्यक्ष रहे। उन्होंने हिंदी-तेलुगु साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन का नेतृत्व किया।[1]

‘एक श्रेष्ठ विचारक, समालोचक और निबंधकार के रूप में, उन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की।

30 मार्च, 2005 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनका साहित्यिक योगदान आज भी हिंदी जगत को प्रेरित करता है।

साहित्यिक कृतियाँ

प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी ने हिंदी और तेलुगु साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाएँ उनके गहन चिंतन और विश्लेषणात्मक दृष्टि को दर्शाती हैं। नीचे उनकी कृतियों को शैली के अनुसार देखें।

साहित्य और समाज

साहित्य, समाज, संस्कृति और भाषा जैसे विषयों पर गहन विचार।

निबंध

मेरे विचार

विभिन्न सामाजिक और साहित्यिक मुद्दों पर उनके व्यक्तिगत विचारों का संग्रह।

निबंध

हिंदी और तेलुगु: एक तुलनात्मक अध्ययन

दोनों भाषाओं की साहित्यिक परंपराओं का गहन और तुलनात्मक विश्लेषण।

अध्ययन

दक्षिण की भाषाएँ और उनका साहित्य

दक्षिणी भाषाओं के साहित्य पर एक विस्तृत अवलोकन।

अध्ययन

वैचारिकी

उनके वैचारिक चिंतन और विश्लेषण को प्रस्तुत करने वाला निबंध संग्रह।

निबंध

शोध और बोध

भाषा और साहित्य पर उनके शोध कार्यों का संकलन।

अध्ययन

वेलुरु दारुल

तमिल भाषा में रचित एक महत्वपूर्ण कृति।

अन्य

Language Problem in India

भारत में भाषा की समस्या पर संपादित एक अंग्रेजी ग्रंथ।

संपादित

भाषा और आधुनिकता

भाषा की परिवर्तनशीलता और आधुनिकता के साथ उसके संबंध पर एक महत्वपूर्ण निबंध।

निबंध

प्रमुख साहित्यिक योगदान

प्रोफेसर रेड्डी केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि एक सेतु निर्माता और दूरदर्शी विचारक थे। उनका योगदान हिंदी साहित्य को भाषाई सीमाओं से परे ले गया।

भाषाई सेतु

उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक सांस्कृतिक और भाषाई पुल का निर्माण किया। दक्षिण भारतीयों को हिंदी और उत्तर भारतीयों को दक्षिणी भाषाएँ सीखने के लिए प्रेरित किया।[2]

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

हिंदी और तेलुगु साहित्य का गहन तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया, जिसने दोनों भाषाओं की साहित्यिक परंपराओं को समझने की नई दृष्टि प्रदान की।

अहिंदी भाषी लेखक

एक गैर-हिंदी भाषी होते हुए भी हिंदी में उच्च कोटि की रचनाएँ कीं और यह साबित किया कि साहित्य भाषा की सीमाओं से परे है।

भाषा-शैली

प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी

प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी की भाषा-शैली विद्वत्तापूर्ण, काव्यात्मक और दार्शनिक होती है। वे गूढ़ वैज्ञानिक अवधारणाओं को सरल, सरस और चित्रात्मक भाषा में प्रस्तुत करते हैं। उनके वाक्य गहन होते हुए भी सहज बोधगम्य होते हैं, जिनमें उपमाएँ, रूपक और भारतीय सांस्कृतिक सन्दर्भ सहजता से प्रवाहित होते हैं। वे विज्ञान को केवल तथ्य नहीं, एक जीवनदर्शन के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनकी शैली संवादात्मक, प्रेरणादायक और सौंदर्यबोध से भरपूर होती है, जो पाठक को सोचने, महसूस करने और समझने के लिए आमंत्रित करती है। वे ज्ञान को अनुभव में रूपांतरित करते हैं।

  • परिष्कृत खड़ी बोली: उनकी भाषा शुद्ध, साहित्यिक और परिमार्जित थी, जिसमें विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता थी।[3]
  • समन्वयवादी शब्दावली: उन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ आवश्यकतानुसार उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का भी सहजता से प्रयोग किया।
  • विचारात्मक शैली: उनके निबंध विचारात्मक और विश्लेषणात्मक होते थे, जो पाठकों को विषय की गहराई में सोचने के लिए प्रेरित करते थे।
  • सरलता और स्पष्टता: गहन विषयों पर लिखने के बावजूद, उनकी शैली में एक सहजता और स्पष्टता थी, जो उनके लेखन को आम पाठकों के लिए भी सुलभ बनाती थी।

सन्दर्भ

  1. प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी – विकिपीडिया (hi.wikipedia.org/wiki/जी_सुंदर_रेड्डी)
  2. प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी का जीवन परिचय | Pro. G. Sundar Reddy ka Jivan Parichay – Vertexal (vertexal.in/upmsp/pro-g-sundar-reddy/)
  3. विभिन्न शैक्षिक YouTube चैनल और अध्ययन सामग्री जो प्रो. जी. सुंदर रेड्डी के साहित्यिक परिचय पर केंद्रित हैं।

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By विक्रम प्रताप

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