‘सही समय’ के चक्कर में फंसा आदमी: जब इंतज़ार ही बन जाए ज़िंदगी का एकमात्र काम!

एक वृद्ध कलाकार बालकनी में बैठकर रंगीन पेंटिंग बना रहा है।

प्रस्तावना: इंतज़ार की कला या टालमटोल की बीमारी?

हम सभी अपनी ज़िंदगी में ‘सही समय’ का इंतज़ार करते हैं। नई नौकरी शुरू करने के लिए, किसी को प्रपोज़ करने के लिए, या फिर बस घर की सफ़ाई शुरू करने के लिए। हम सोचते हैं कि जब तारे अनुकूल होंगे, ग्रह सही जगह पर होंगे, या बस ‘सही’ प्रेरणा मिलेगी, तभी हम कुछ बड़ा या महत्वपूर्ण काम शुरू करेंगे। लेकिन क्या हो जब यह ‘सही समय’ का इंतज़ार ही आपकी पूरी ज़िंदगी का सार बन जाए? जब हर छोटा-बड़ा फ़ैसला, हर कार्रवाई, एक ऐसे काल्पनिक ‘उत्कृष्ट’ पल के लिए टाल दी जाए जो कभी आता ही न हो?

यह कहानी है एक ऐसे ही विचित्र किरदार की, श्री रमेश चंद्र शर्मा की, जो ‘सही समय’ की खोज में अपनी पूरी ज़िंदगी को दाँव पर लगा देते हैं। उनके लिए, जीवन का हर पल एक ऐसा स्टेज था जहाँ उन्हें ‘परफ़ेक्ट’ एंट्री का इंतज़ार था, लेकिन पर्दा कभी उठता ही नहीं था।

यह सिर्फ़ एक हास्य कथा नहीं है, यह एक मज़ेदार व्यंग्य है हमारी उस प्रवृत्ति पर जहाँ हम टालमटोल को ‘योजना’ का नाम दे देते हैं। यह कहानी आपको हँसाएगी, सोचने पर मजबूर करेगी और शायद आपको भी अपने उन ‘सही समय’ वाले प्रोजेक्ट्स पर दोबारा विचार करने के लिए प्रेरित करेगी जिन्हें आप सालों से टाल रहे हैं!


परिचय: श्री रमेश चंद्र शर्मा – ‘सही समय’ के साधक

हमारे कहानी के नायक हैं, श्री रमेश चंद्र शर्मा। उन्हें उनके दोस्त और परिवार वाले प्यार से ‘शर्मा जी’ कहते थे, लेकिन उनके ऑफ़िस में उन्हें ‘पेंडिंग-किंग’ के नाम से जाना जाता था। शर्मा जी को हर काम के लिए ‘सही समय’ का इंतज़ार रहता था। उनके लिए, कोई भी काम बिना ‘परफ़ेक्ट टाइमिंग’ के शुरू करना असंभव था।

छोटी सी बात हो या बड़ी, उनका तकियाकलाम था, “देखो, अभी सही समय नहीं है।”

अगर उन्हें सुबह उठना होता, तो वे सोचते, “अभी सूरज ठीक से नहीं निकला, सही समय नहीं।”

अगर उन्हें बिल भरना होता, “अभी महीने की शुरुआत है, सही समय नहीं।”

अगर उन्हें अपनी प्रेमिका को शादी के लिए प्रपोज़ करना होता, “अभी तारे सही नहीं हैं, सही समय नहीं।”

शर्मा जी ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण क्षण इसी ‘सही समय’ के इंतज़ार में गँवा दिए थे। उनके पास एक ख़ूबसूरत डायरी थी जिसमें उन्होंने अपने उन सभी कामों को लिखा हुआ था जो ‘सही समय’ पर किए जाने थे। यह डायरी इतनी मोटी हो गई थी कि एक छोटी किताब बन गई थी।

उन्हें क्या पता था कि उनका यह ‘सही समय’ का इंतज़ार ही उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा हास्य-नाटक बनने वाला था।


भाग 1: ‘सही समय’ की खोज में रोज़मर्रा के कारनामे

शर्मा जी के लिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी भी ‘सही समय’ की खोज का एक युद्ध थी।

एक दिन, उनकी अलमारी में कपड़ों का पहाड़ बन गया था। पत्नी ने कहा, “शर्मा जी, अलमारी साफ़ कर लीजिए!”

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शर्मा जी ने गहरी साँस ली, “देखो देवी जी, अलमारी साफ़ करने का सही समय सुबह का होता है, जब हवा ताज़ी हो, और मन शांत। अभी शाम है, और मन थोड़ा विचलित है। सही समय नहीं।”

अगले दिन सुबह, “अभी चिड़िया चहचहा रही हैं, शोर हो रहा है। सही समय नहीं।”

तीसरे दिन, “अभी बादलों का मौसम है, धूप नहीं है। कपड़ों को सुखाने का सही समय नहीं।”

नतीजा यह हुआ कि उनकी अलमारी अब एक गुफा बन चुकी थी जिसमें कपड़े नहीं, बल्कि रहस्य दफ़न थे।

एक बार, उनके घर में नल से पानी टपक रहा था। पत्नी ने कहा, “प्लम्बर को बुला लीजिए!”

शर्मा जी बोले, “अभी प्लम्बर का फ़ोन करने का सही समय नहीं है। दोपहर में सब बिज़ी रहते हैं। रात को कॉल करना ठीक नहीं।”

कई हफ़्तों तक नल टपकता रहा। एक दिन, पानी की टंकी खाली हो गई।

“अरे! पानी क्यों नहीं आ रहा?” शर्मा जी चिल्लाए।

पत्नी ने ठंडी आह भरते हुए कहा, “क्योंकि आपने प्लम्बर को बुलाने के ‘सही समय’ का इंतज़ार किया।”

शर्मा जी को अपने हर काम के लिए एक ‘परफ़ेक्ट मुहूर्त’ चाहिए था। उन्हें लगता था कि अगर वे ‘सही समय’ पर काम शुरू करेंगे, तो सफलता निश्चित है। लेकिन यह ‘परफेक्शन’ उन्हें काम शुरू करने से ही रोक रहा था।


भाग 2: करियर और रिश्ते में ‘सही समय’ का कहर

शर्मा जी की यह आदत उनके निजी और पेशेवर जीवन पर भी भारी पड़ रही थी।

उनके ऑफ़िस में एक बड़ा प्रोजेक्ट आया। बॉस ने कहा, “शर्मा जी, इस पर काम शुरू कीजिए!”

करियर और रिश्ते में 'सही समय' का कहर

शर्मा जी ने जवाब दिया, “सर, अभी टीम का मूड सही नहीं है। मार्केट की स्थिति भी अस्थिर है। यह प्रोजेक्ट शुरू करने का सही समय नहीं।”

उनके सहकर्मी ने प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया और उसे सफलतापूर्वक पूरा भी कर लिया, और प्रमोशन पा लिया। शर्मा जी वहीं के वहीं रह गए, ‘सही समय’ का इंतज़ार करते हुए।

उनके रिश्तों में भी ‘सही समय’ ने कहर बरपाया। उन्होंने अपनी प्रेमिका मीरा को सालों तक प्रपोज़ नहीं किया।

“मीरा, मैं तुम्हें प्रपोज़ करूँगा, लेकिन अभी सही समय नहीं। अभी मेरी सैलरी नहीं बढ़ी।”

सैलरी बढ़ी, “अभी शनि का प्रकोप है, सही समय नहीं।”

शनि का प्रकोप हटा, “अभी गर्मियों की छुट्टी है, छुट्टियाँ ख़त्म होने पर सही समय होगा।”

नतीजा यह हुआ कि मीरा ने किसी और से शादी कर ली, जिसने ‘सही समय’ का इंतज़ार नहीं किया। शर्मा जी टूट गए, लेकिन उन्होंने खुद को समझाया, “शायद यह मेरे लिए सही रिश्ता नहीं था, क्योंकि प्रपोज़ करने का सही समय कभी आया ही नहीं।”

उनका जीवन उन सभी अवसरों का कब्रिस्तान बन गया था जिन्हें उन्होंने ‘सही समय’ के लिए टाल दिया था। वे लगातार बहाने बनाते रहते थे – मौसम ठीक नहीं, मूड ठीक नहीं, सितारे ठीक नहीं, लोग ठीक नहीं। ‘सही समय’ एक ऐसी अदृश्य दीवार बन गई थी जो उन्हें हर काम से रोक रही थी।


भाग 3: एक ‘समय-अज्ञान’ बच्चे का आगमन और सबक

शर्मा जी की ज़िंदगी में बदलाव तब आया जब उनकी शादी एक समझदार और व्यावहारिक महिला, सीमा से हुई (जिन्होंने ‘सही समय’ की परवाह न करते हुए उनसे शादी कर ली)। उनके घर एक नन्हा मेहमान आया, जिसका नाम रखा गया ‘चिंटू’।

चिंटू को ‘सही समय’ से कोई मतलब नहीं था। उसे जब भूख लगती, वह रोता। जब खेलना होता, वह खिलौने पकड़ लेता। जब नींद आती, वह सो जाता। वह अपनी हर इच्छा को तुरंत पूरा करता था।

एक दिन चिंटू ने दीवार पर रंग भरना शुरू कर दिया। शर्मा जी ने देखा और चिल्लाए, “चिंटू! रुको! दीवार पर पेंटिंग करने का सही समय तब होता है जब तुम्हारे पास कैनवास हो, और तुम बड़े हो जाओ!”

लेकिन चिंटू ने उनकी परवाह नहीं की। वह हँसता रहा और दीवार पर रंग भरता रहा।

शर्मा जी ने सोचा, “यह बच्चा तो समय की कोई कद्र ही नहीं करता!”

एक 'समय-अज्ञान' बच्चे का आगमन और सबक

एक और घटना हुई। चिंटू को स्कूल में एक नाटक में हिस्सा लेना था। उसे एक कविता याद करनी थी। शर्मा जी ने चिंटू से कहा, “अभी याद कर लो, बेटा। एग्जाम के एक दिन पहले याद करने का सही समय नहीं होता।”

चिंटू ने कहा, “नहीं पापा, मैं अभी खेलूँगा। मुझे याद करने का सही समय रात को सोने से पहले लगता है।”

शर्मा जी को गुस्सा आया। लेकिन चिंटू ने अपनी मर्ज़ी की। उसने कविता तभी याद की जब उसे ‘सही’ लगा, और उसने नाटक में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।

शर्मा जी ने अपने बच्चे को देखा। चिंटू बिना किसी ‘सही समय’ के हर काम कर रहा था – खेल रहा था, सीख रहा था, गलतियाँ कर रहा था, और जीवन का आनंद ले रहा था। उसके लिए, ‘सही समय’ वही था जब उसे कुछ करने की इच्छा होती थी। शर्मा जी को पहली बार एहसास हुआ कि ‘सही समय’ शायद एक बहाना है, और जीवन बस ‘अब’ में ही होता है।


भाग 4: ‘समय’ से सुलह और जीवन की शुरुआत

धीरे-धीरे, शर्मा जी ने चिंटू से सीखना शुरू किया। उन्होंने छोटे-छोटे काम ‘अभी’ करना शुरू किए। अलमारी साफ़ कर ली (हालाँकि मौसम ठीक नहीं था)। प्लम्बर को बुला लिया (हालाँकि दोपहर थी)। उन्होंने देखा कि काम बिना ‘सही समय’ के भी हो सकते हैं, और कई बार तो बेहतर भी होते हैं।

उन्होंने एक पुराने शौक़ को फिर से शुरू किया – पेंटिंग। पहले वे हमेशा ‘सही समय’ का इंतज़ार करते थे। अब उन्होंने बस ब्रश उठाया और रंग भरना शुरू कर दिया। उनकी पेंटिंग में अब ज़्यादा ज़िंदगी थी, क्योंकि वे ‘परफेक्शन’ की बजाय ‘प्रक्रिया’ पर ध्यान दे रहे थे।

'समय' से सुलह और जीवन की शुरुआत

शर्मा जी को एहसास हुआ कि जीवन ‘सही समय’ का इंतज़ार करने के लिए बहुत छोटा है। हर पल अपने आप में ‘सही’ होता है, बस आपको उसे जीना आना चाहिए। उन्होंने सीखा कि असफलता भी एक ‘सही समय’ पर आने वाला अनुभव है जो आपको सिखाता है।

उनके ‘सही समय’ की डायरी अब उनके नए ‘अभी’ वाले प्रोजेक्ट्स की लिस्ट में बदल गई थी। उन्होंने अपने बॉस से एक नया प्रोजेक्ट माँगा, बिना किसी ‘सही समय’ की परवाह किए। उन्होंने अपनी पत्नी को एक सरप्राइज़ डेट पर ले गए, बिना ग्रहों की चाल देखे।

‘सही समय’ के चक्कर में फंसा आदमी अब ‘अभी’ में जीने वाला आदमी बन चुका था। उसकी ज़िंदगी में अब कोई बहाना नहीं था, बस काम था, अनुभव था और ढेर सारी हँसी थी। यह कहानी हमें हँसाती है और साथ ही यह भी सिखाती है कि ज़िंदगी के सबसे अच्छे पल तब होते हैं, जब हम इंतज़ार करना छोड़ देते हैं और बस जीना शुरू कर देते हैं।


निष्कर्ष

“सही समय’ के चक्कर में फंसा आदमी” एक हास्यपूर्ण लेकिन गंभीर कहानी है जो टालमटोल की बीमारी और ‘परफेक्ट मोमेंट’ की खोज के मानवीय जुनून पर व्यंग्य करती है। यह हमें याद दिलाती है कि जीवन एक सतत प्रक्रिया है, और हर पल, अपनी सभी अपूर्णताओं के साथ, कुछ नया शुरू करने का ‘सही समय’ होता है। शर्मा जी का सफर हमें बताता है कि खुशियाँ और सफलता अक्सर ‘अभी’ में ही छिपी होती हैं, न कि किसी काल्पनिक भविष्य में। तो, इंतज़ार करना छोड़िए, और अपनी ज़िंदगी को ‘अभी’ जीना शुरू कीजिए!


संदर्भ (References)

यह हास्य कथा ‘अनोखी हास्य कथाओं’ की श्रेणी में आती है, जो मानवीय मनोविज्ञान, आदतों और टालमटोल (Procrastination) पर हास्य और व्यंग्य के माध्यम से टिप्पणी करती है।

  1. टालमटोल (Procrastination) का मनोविज्ञान:
    • यह कहानी मानवीय टालमटोल की आदत पर केंद्रित है, जहाँ लोग अक्सर काम को बाद के लिए टाल देते हैं, भले ही उन्हें पता हो कि इससे नकारात्मक परिणाम होंगे। ‘सही समय’ की खोज अक्सर इस टालमटोल का एक बहाना होती है, जो ‘परफेक्शनिज्म’ (पूर्णतावाद) और असफलता के डर से भी जुड़ी हो सकती है।
    • संबंधित लिंक: आप टालमटोल के मनोविज्ञान और इससे कैसे निपटा जाए, इस पर किसी मनोवैज्ञानिक या आत्म-सुधार संबंधी लेख का हिंदी लिंक यहाँ जोड़ सकते हैं।
  2. हास्य के माध्यम से मानवीय कमियों पर व्यंग्य (Satire on Human Flaws through Humor):
    • हास्य साहित्य अक्सर मानवीय कमियों, आदतों और विरोधाभासों पर प्रकाश डालने के लिए व्यंग्य का उपयोग करता है। शर्मा जी का किरदार ‘सही समय’ के नाम पर अपनी ज़िंदगी को कैसे टालते हैं, यह एक हास्यपूर्ण लेकिन मार्मिक व्यंग्य है, जो पाठकों को अपनी ही आदतों पर सोचने पर मजबूर करता है।
    • संबंधित लिंक: आप व्यंग्य के विभिन्न रूपों और उसके सामाजिक उद्देश्य पर किसी साहित्यिक या दार्शनिक लेख का हिंदी लिंक यहाँ जोड़ सकते हैं।
  3. ‘अभी’ में जीने का महत्व (The Importance of Living in the ‘Now’):
    • कहानी का अंत ‘सही समय’ के भ्रम को छोड़कर ‘अभी’ में जीने के संदेश के साथ होता है। यह अवधारणा कई दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं में पाई जाती है, जो वर्तमान क्षण की महत्ता और भविष्य की अनिश्चितता पर जोर देती है। शर्मा जी का चिंटू से सीखना इस संदेश को हास्यपूर्ण ढंग से पुष्ट करता है।
    • संबंधित लिंक: आप ‘माइंडफुलनेस’ या वर्तमान में जीने के महत्व पर किसी आध्यात्मिक या व्यक्तिगत विकास संबंधी लेख का हिंदी लिंक यहाँ जोड़ सकते हैं।

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By विक्रम प्रताप

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