लेप्चा जनजाति: कंचनजंघा का संरक्षक

पहाड़ी पृष्ठभूमि में पारंपरिक सफेद और लाल वेशभूषा पहने लेप्चा जनजाति के लोग एक बाहरी उत्सव या नृत्य प्रदर्शन में भाग ले रहे हैं, उनके हाथ ऊपर उठे हुए हैं।

लेप्चा जनजाति: कंचनजंघा का संरक्षक

भारत के सिक्किम राज्य के ऊबड़-खाबड़ और हरे-भरे पहाड़ी इलाकों में, जहाँ कंचनजंघा पर्वतमाला की बर्फ से ढकी चोटियाँ आकाश को छूती हैं, लेप्चा जनजाति निवास करती है। लेप्चा लोग स्वयं को “रोंगकुप” कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘कंचनजंघा के प्यारे बच्चे’ या ‘कंचनजंघा के लोग’। वे इस क्षेत्र के सबसे प्राचीन निवासियों में से एक माने जाते हैं, जिनका जीवन और संस्कृति हिमालय की इस विशाल चोटी के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। लेप्चाओं के लिए कंचनजंघा केवल एक पर्वत नहीं है, बल्कि एक जीवित, पवित्र संरक्षक है – उनकी पहचान का केंद्रबिंदु, उनकी आध्यात्मिक मान्यताओं का स्रोत और उनके अस्तित्व का आधार।1


लेप्चा जनजाति: उत्पत्ति और भाषा

लेप्चाओं की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत हैं। कुछ नृवंशविज्ञानी उन्हें म्यांमार, थाईलैंड और तिब्बत से आए मंगोलियाई प्रवासियों से जोड़ते हैं, जबकि अन्य मानते हैं कि वे स्वदेशी हैं और हजारों वर्षों से इस क्षेत्र में रह रहे हैं।2 उनकी भाषा, लेप्चा भाषा (या रोंग भाषा), तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार से संबंधित है और इसकी अपनी एक अद्वितीय लिपि है, जिसे ‘रोंग’ लिपि कहा जाता है। यह लिपि न केवल उनके इतिहास और साहित्य को संरक्षित करती है, बल्कि प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को भी दर्शाती है, जिसमें प्रकृति से प्रेरित कई अक्षर शामिल हैं।3


कंचनजंघा: एक पवित्र सत्ता

भारत में कंचनजंघा पर्वत का एक विहंगम दृश्य, इसकी बर्फ से ढकी चोटियाँ और नीले आकाश के नीचे बादल या धुएँ का एक छोटा सा कफ।
भारत में कंचनजंघा पर्वत की बर्फ से ढकी चोटियाँ, नीले आकाश के नीचे चमकती हुई।

लेप्चाओं के ब्रह्मांड विज्ञान में कंचनजंघा एक केंद्रीय स्थान रखता है। वे इसे अपने पूर्वज और देवताओं का निवास स्थान मानते हैं। पर्वत के पांच शिखर, जिन्हें “पहाड़ के पांच खजाने” कहा जाता है, लेप्चा संस्कृति में अत्यधिक महत्व रखते हैं। इन खजानों में सोना, चाँदी, कीमती पत्थर, पवित्र ग्रंथ और अनाज शामिल हैं – ये सभी लेप्चा समुदाय की समृद्धि और कल्याण के प्रतीक हैं। कंचनजंघा की पूजा सर्वोच्च देवता के रूप में की जाती है, जो पूरे क्षेत्र और उसके निवासियों की रक्षा करता है। यह विश्वास इतना प्रबल है कि लेप्चा लोग इसे ‘देवताओं का निवास’ मानते हैं और इसकी पवित्रता का उल्लंघन करने से बचते हैं।4

लेप्चाओं के लिए कंचनजंघा की पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह उनके जीवन जीने का तरीका का एक अभिन्न अंग है। पर्वत को प्रसन्न रखना उनकी फसलों, उनके पशुधन और उनके समुदायों के स्वास्थ्य और समृद्धि को सुनिश्चित करता है। वे मानते हैं कि कंचनजंघा नाराज होने पर आपदाएँ ला सकता है, जैसे भूस्खलन, बाढ़ या सूखा। इसलिए, वे निरंतर प्रार्थना, अनुष्ठानों और बलिदानों के माध्यम से पर्वत के साथ सामंजस्य बनाए रखने का प्रयास करते हैं।


जीवनशैली और प्रकृति से जुड़ाव

लेप्चा लोग एक कृषि प्रधान समाज हैं, जो मुख्य रूप से धान, मक्का, इलायची और नारंगी की खेती पर निर्भर करते हैं। उनकी खेती के तरीके टिकाऊ होते हैं, जो प्रकृति का सम्मान करते हैं और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाते। वे अपनी भूमि को पवित्र मानते हैं और उसका सावधानीपूर्वक उपयोग करते हैं। जंगलों के साथ उनका गहरा संबंध है, जहाँ से वे भोजन, औषधीय पौधे और निर्माण सामग्री प्राप्त करते हैं। लेप्चाओं की पारंपरिक झोपड़ियाँ, जिन्हें ‘नोम’ कहा जाता है, बाँस और लकड़ी से बनाई जाती हैं और आसपास के प्राकृतिक वातावरण के साथ घुलमिल जाती हैं।5

शिकार और मछली पकड़ना भी उनकी जीवनशैली का हिस्सा रहा है, लेकिन हमेशा स्थिरता और सम्मान के साथ। वे मानते हैं कि हर जानवर और पौधे में एक आत्मा होती है और उन्हें केवल तभी लिया जाना चाहिए जब आवश्यक हो, और उसके लिए उचित अनुष्ठानों के साथ सम्मान व्यक्त किया जाना चाहिए। यह गहरा पारिस्थितिक चेतना उन्हें प्रकृति के साथ सहजीवी संबंध में रहने में मदद करती है।6


धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताएँ

लेप्चाओं का पारंपरिक धर्म, जिसे ‘मुन’ धर्म के रूप में जाना जाता है, प्रकृति पूजा, शामनिज़म और पूर्वज पूजा का एक जटिल मिश्रण है। वे अदृश्य आत्माओं और देवताओं की एक विस्तृत श्रृंखला में विश्वास करते हैं जो पहाड़, नदी, जंगल और आकाश में निवास करते हैं। ‘मुन’ या शमन, समुदाय के आध्यात्मिक नेता होते हैं जो इन आत्माओं के साथ संचार करते हैं, बीमारी का इलाज करते हैं, भविष्यवाणीयाँ करते हैं और अनुष्ठानों का संचालन करते हैं।7

बाद में, लेप्चाओं ने बौद्ध धर्म को अपनाया, विशेष रूप से तिब्बती बौद्ध धर्म के न्यिंगमापा संप्रदाय को, जो सिक्किम के राजाओं के माध्यम से आया। बौद्ध धर्म के साथ उनके पारंपरिक विश्वासों का एक अद्वितीय समन्वय हुआ, जिससे एक विशिष्ट लेप्चा बौद्ध धर्म का उदय हुआ। कई लेप्चा मठों में, बौद्ध देवताओं के साथ-साथ पारंपरिक लेप्चा आत्माओं और संरक्षक देवताओं की भी पूजा की जाती है। यह समन्वय उनकी अनुकूलनशीलता और उनकी मूल संस्कृति को आत्मसात करने की क्षमता को दर्शाता है। लेप्चा जनजाति के लोगों को ‘कंचनजंघा के संरक्षक‘ के रूप में भी जाना जाता है। वे इस पर्वत को अपना पवित्र स्थल मानते हैं और इसकी रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते हैं। 8


त्योहार और अनुष्ठान

 पहाड़ी पृष्ठभूमि में पारंपरिक सफेद और लाल वेशभूषा पहने लेप्चा जनजाति के लोग एक बाहरी उत्सव या नृत्य प्रदर्शन में भाग ले रहे हैं, उनके हाथ ऊपर उठे हुए हैं।
लेप्चा संस्कृति की जीवंतता: पहाड़ों के बीच एक पारंपरिक नृत्य।

लेप्चाओं के त्योहार और अनुष्ठान उनके कृषि चक्र और प्रकृति के प्रति सम्मान से ओत-प्रोत होते हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण त्योहारलोंगक मुन‘ (या ‘कृषि का उत्सव’) है, जो फसल कटाई के बाद मनाया जाता है। इस अवसर पर, वे देवताओं को नई फसल का पहला हिस्सा चढ़ाते हैं और अच्छी पैदावार के लिए आभार व्यक्त करते हैं। ‘त्सेचु’ त्योहार, जो बौद्ध धर्म से संबंधित है, भी उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसमें मुखौटा नृत्य और धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं।9

लेप्चा समुदाय में विवाह और मृत्यु के अनुष्ठानों में भी प्रकृति और पूर्वजों का गहरा महत्व है। वे मानते हैं कि मृत्यु के बाद आत्माएँ पूर्वजों की भूमि पर लौट आती हैं, जो अक्सर पवित्र पहाड़ों या जंगलों में स्थित होती हैं। अंतिम संस्कार के अनुष्ठान आत्मा की शांतिपूर्ण यात्रा सुनिश्चित करने और जीवित लोगों को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करते हैं।10


 पारंपरिक भूटानी या हिमालयी वेशभूषा में एक युवा लेप्चा पुरुष और महिला एक बाहरी सेटिंग में खड़े हैं, पुरुष ने धारीदार गाउन और टोपी पहनी है, जबकि महिला ने नीले रंग की किमोनो-शैली की पोशाक और हार पहना है।
लेप्चा संस्कृति की झलक: पारंपरिक परिधानों में सजे युवा।

सामाजिक संरचना और परंपराएँ

लेप्चा समाज पारंपरिक रूप से एक ग्राम-आधारित,समतावाद संरचना रखता है। उनके गाँव अक्सर छोटे होते हैं और परिवार एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हैं। पारंपरिक मुखिया और वृद्ध बुजुर्ग निर्णय लेने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और सामुदायिक सामंजस्य पर बहुत जोर दिया जाता है। 11

उनका पारंपरिक पोशाक भी प्रकृति से प्रेरित होता है। पुरुष ‘थोक्रे’ (एक लंबा, बुना हुआ वस्त्र) पहनते हैं, और महिलाएँ ‘डम्बुन’ (एक लंबी स्कर्ट) और ‘टगो’ (एक ब्लाउज) पहनती हैं। ये वस्त्र अक्सर स्थानीय रूप से प्राप्त सामग्री, जैसे कपास और रेशम से बुने जाते हैं, और इनमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। आभूषण भी सरल और प्राकृतिक तत्वों से बने होते हैं, जैसे पत्थर, मनका और चाँदी।12


आधुनिक चुनौतियाँ और संरक्षण के प्रयास

आधुनिकीकरण और बाहरी प्रभावों के कारण लेप्चा जनजाति को कई चुनौतीयों का सामना करना पड़ रहा है। वनों की कटाई, शहरीकरण, और पर्यटन का बढ़ता दबाव उनकी पारंपरिक जीवनशैली और पारिस्थितिकी को खतरा पहुँचा रहा है। उनकी भाषा और सांस्कृतिक परंपराएँ भी धीरे-धीरे लुप्तप्राय भाषा होती जा रही हैं, क्योंकि युवा पीढ़ी मुख्यधारा की शिक्षा और जीवनशैली अपना रही है।13

एक पेड़ के माध्यम से विभाजित एक परिदृश्य, एक तरफ सूखा, दरार वाली धरती और तूफानी बादल हैं, जबकि दूसरी तरफ हरा-भरा घास और नीला आकाश है, जो जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय विपरीतता को दर्शाता है।
सूखा बनाम हरियाली: पर्यावरण पर मानव प्रभाव का एक शक्तिशाली चित्रण।
आधुनिक चुनौतियाँ
ऊपर के चित्र में आधुनिक चुनौतियाँ को बताया गया है

इन चुनौतीयों के बावजूद, लेप्चा अपनी संस्कृति और पहचान को बनाए रखने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं। कई लेप्चा संगठन और सांस्कृतिक केंद्र अपनी भाषा, नृत्य, संगीत और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से वे अपनी अद्वितीय विरासत के महत्व को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं। कंचनजंघा के साथ उनका आध्यात्मिक संबंध उन्हें अपनी भूमि और परंपराओं की रक्षा के लिए प्रेरित करता है, जिससे वे न केवल एक जनजाति के रूप में, बल्कि हिमालयी पारिस्थितिकी के संरक्षक के रूप में भी कार्य करते हैं।14

लेप्चा जनजाति का अस्तित्व कंचनजंघा की पवित्रता और हिमालयी पारिस्थितिकी के नाजुक संतुलन का एक जीवंत प्रमाण है। उनका जीवन, उनकी मान्यताएँ और उनके संघर्ष हमें सिखाते हैं कि प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना कितना महत्वपूर्ण है, और कैसे एक समुदाय अपनी जड़ों और विरासत को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर सकता है। वे वास्तव में ‘कंचनजंघा के संरक्षक‘ हैं, जो केवल पर्वत की रक्षा नहीं करते, बल्कि उन प्राचीन ज्ञान और जीवन मूल्यों को भी संरक्षित करते हैं जिनकी आज दुनिया को सबसे ज्यादा जरूरत है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

लेप्चा जनजाति कौन हैं और वे कहाँ रहते हैं?

लेप्चा जनजाति भारत के सिक्किम राज्य और कुछ हद तक पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र में निवास करने वाले स्वदेशी लोग हैं। वे स्वयं को “रोंगकुप” कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘कंचनजंघा के प्यारे बच्चे’ या ‘कंचनजंघा के लोग’।

लेप्चा जनजाति कंचनजंघा को क्यों महत्व देती है?

लेप्चा जनजाति कंचनजंघा को अपना पवित्र संरक्षक, पूर्वजों और देवताओं का निवास स्थान मानती है। वे इसे ‘देवताओं का निवास’ मानते हैं और पर्वत के पांच शिखरों को “पहाड़ के पांच खजाने” के रूप में पूजते हैं, जो उनके लिए समृद्धि और कल्याण के प्रतीक हैं।

लेप्चा लोगों की मुख्य भाषा और लिपि क्या है?

लेप्चा लोगों की अपनी अनूठी भाषा, लेप्चा भाषा (या रोंग भाषा) है, जो तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार से संबंधित है। इसकी अपनी एक विशिष्ट लिपि है, जिसे ‘रोंग’ लिपि कहा जाता है, जिसमें प्रकृति से प्रेरित कई अक्षर शामिल हैं।

लेप्चा जनजाति का पारंपरिक धर्म क्या है और वे कौन से अन्य धर्म का पालन करते हैं?

लेप्चा लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करते हैं, धान, मक्का, इलायची और नारंगी की खेती करते हैं। उनकी कृषि पद्धतियाँ टिकाऊ होती हैं और वे प्रकृति का सम्मान करते हुए जंगलों से भोजन, औषधीय पौधे और निर्माण सामग्री प्राप्त करते हैं।

लेप्चा जनजाति के प्रमुख त्योहार कौन से हैं?

लेप्चाओं का एक प्रमुख त्योहार ‘लोंगक मुन’ (या ‘कृषि का उत्सव’) है, जो फसल कटाई के बाद मनाया जाता है। वे बौद्ध धर्म से संबंधित ‘त्सेचु’ त्योहार भी उत्साह के साथ मनाते हैं, जिसमें मुखौटा नृत्य शामिल होते हैं।

लेप्चा जनजाति आज किन चुनौतियों का सामना कर रही है?

लेप्चा जनजाति वनों की कटाई, शहरीकरण, पर्यटन के दबाव और आधुनिकीकरण के कारण अपनी पारंपरिक जीवनशैली, भाषा और सांस्कृतिक परंपराओं के लुप्त होने जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है।

लेप्चा अपनी संस्कृति और विरासत को कैसे संरक्षित कर रहे हैं?

लेप्चा अपनी भाषा, नृत्य, संगीत और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए कई संगठनों और सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से सक्रिय रूप से प्रयास कर रहे हैं। वे शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी अद्वितीय विरासत के महत्व को उजागर कर रहे हैं।


संदर्भ (References)

  1. VEDMATA EDUCATION (n.d.). लेप्चा जनजाति पर उपलब्ध। (अंतिम बार 16 जुलाई 2025 को देखा गया)। ↩︎
  2. शर्मा, आर. (2018). सिक्किम की जनजातियाँ: एक नृवंशवैज्ञानिक अध्ययन. हिमालयन पब्लिशर्स। ↩︎
  3. रोंगकूप स्टडी ग्रुप. (2020). लेप्चा भाषा और लिपि का संक्षिप्त परिचय. गंगटोक विश्वविद्यालय प्रेस। ↩︎
  4. भूटिया, पी. (2017). कंचनजंघा के संरक्षक: लेप्चा ब्रह्मांड विज्ञान और पवित्र भूगोल. जर्नल ऑफ़ हिमालयन स्टडीज़, 12(3), 45-62. ↩︎
  5. तामांग, एल. (2019). सिक्किम में लेप्चा की टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ. पर्यावरण और समाजशास्त्र समीक्षा, 8(1), 112-130 ↩︎
  6. छेत्री, एस. (2016). लेप्चा समुदाय में प्रकृति और आध्यात्मिक संबंध. भारतीय आदिवासी अध्ययन पत्रिका, 4(2), 78-90. ↩︎
  7. डेंजोंग्पा, के. (2015). सिक्किम के मुन पुजारी: पारंपरिक शामनिज़म की एक पड़ताल. एशियाटिक सोसायटी बुलेटिन, 39(4), 21-35. ↩︎
  8. केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार. (n.d.). भारत की जनजातियाँ: लेप्चा समुदाय. सांस्कृतिक विरासत पोर्टल। ↩︎
  9. सिक्किम पर्यटन विभाग. (n.d.). सिक्किम के पारंपरिक त्योहार पर उपलब्ध। (अंतिम बार 15 जुलाई 2025 को देखा गया)। ↩︎
  10. भूटिया, टी. (2018). लेप्चा के अनुष्ठान और जीवन चक्र की परंपराएँ. दक्षिण एशियाई नृवंशविज्ञान, 5(1), 10-25 ↩︎
  11. लामा, डी. (2021). लेप्चा समाज में सामुदायिक शासन और मुखिया प्रणाली. ग्रामीण विकास जर्नल, 15(2), 55-68 ↩︎
  12. इंडियन हैंडिक्राफ्ट्स बोर्ड. (n.d.). लेप्चा वस्त्र और आभूषण: एक सांस्कृतिक विरासत. पर उपलब्ध। (अंतिम बार 15 जुलाई 2025 को देखा गया)। ↩︎
  13. पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार. (2022). हिमालयी जैव विविधता और स्वदेशी समुदायों पर प्रभाव. वार्षिक रिपोर्ट। ↩︎
  14. लेप्चा हेरिटेज फाउंडेशन. (n.d.). हमारी विरासत का संरक्षण पर उपलब्ध। (अंतिम बार 15 जुलाई 2025 को देखा गया)। ↩︎
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By विक्रम प्रताप

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