सच्चिदानंद हीरानंद वात्‍स्‍यायन(अज्ञेय)

अज्ञेय जी का ब्लैक एंड व्हाइट पोर्ट्रेट, चश्मा और दाढ़ी के साथ, विचारशील अभिव्यक्ति।

जीवन यात्रा: एक क्रांतिकारी से साहित्यकार तक

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जीवन साहित्यिक और क्रांतिकारी गतिविधियों से भरा रहा। उनकी यात्रा ने हिंदी साहित्य में नए क्षितिज खोले।

7 मार्च को कसया, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में जन्म। पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन।

प्रारंभिक शिक्षा घर पर संस्कृत, फ़ारसी, तमिल और अंग्रेजी में हुई। लाहौर से विज्ञान में स्नातक (B.Sc.) की डिग्री प्राप्त की।

भगत सिंह के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण गिरफ्तार हुए और कई वर्षों तक जेल में रहे। (विकिपीडिया)

‘उनका पहला कहानी संग्रह ‘विपथगा’ प्रकाशित हुआ, जिसने उनके साहित्यिक सफर की शुरुआत की।

‘तार सप्तक’ का संपादन, जिसने हिंदी कविता में ‘प्रयोगवाद’ नामक नए काव्य आंदोलन का सूत्रपात किया। (विकिपीडिया)

‘दूसरा सप्तक’ का संपादन, जिसमें नए कवियों को प्रस्तुत किया और प्रयोगवादी धारा को आगे बढ़ाया।

उनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ प्रकाशित हुआ।

यह कविता संग्रह, जिसमें ‘असाध्य वीणा’ जैसी लंबी कविता शामिल है, प्रकाशित हुआ। उन्हें इसके लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.

उनके महाकाव्य ‘कितनी नावों में कितनी बार’ के लिए साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। (विकिपीडिया)

4 अप्रैल को दिल्ली में निधन। उन्होंने अपने पीछे एक विशाल और प्रभावशाली साहित्यिक विरासत छोड़ी।

साहित्यिक कृतियाँ: विविध विधाओं का संगम

अज्ञेय जी ने कविता, उपन्यास, कहानी और यात्रा वृत्तांत सहित साहित्य की कई विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया। साहित्यिक पत्रिकाओं और समीक्षाओं में उनके योगदान का उल्लेख है।

भग्नदूत

1933 – काव्य

विपथगा

1937 – कहानी

चिंता

1942 – काव्य

परंपरा

1944 – कहानी

कोठरी की बात

1945 – कहानी

त्रिशंकु

1945 – निबंध

इत्यलम्

1946 – काव्य

शरणार्थी

1948 – कहानी

नदी के द्वीप

1951 – उपन्यास

जयदोल

1951 – कहानी

अरे यायावर रहेगा याद?

1953 – यात्रा वृत्तांत

बावरा अहेरी

1954 – काव्य

आत्मनेपद

1960 – निबंध

अपने-अपने अजनबी

1961 – उपन्यास

एक बूँद सहसा उछली

1961 – यात्रा वृत्तांत

सागर मुद्रा

1970 – काव्य

अद्यतन

1977 – निबंध

भवती

1980 – निबंध

विचारधारा और दर्शन: प्रयोग और व्यक्तिवाद

अज्ञेय जी की साहित्यिक यात्रा उनके गहन दार्शनिक चिंतन और अद्वितीय बौद्धिकता से ओत-प्रोत है। उन्होंने हिंदी साहित्य को नए विचार दिए।

प्रयोगवाद के प्रणेता

नए शिल्प, विषय-वस्तु और अभिव्यक्ति के तरीकों पर जोर दिया, रूढ़ियों को तोड़कर कविता को नया आयाम दिया। (आलोचनात्मक ग्रंथ)

व्यक्ति-स्वातंत्र्य

व्यक्ति की अंतरात्मा, अकेलेपन, स्वतंत्रता और अस्तित्ववादी दर्शन का गहन अन्वेषण उनके साहित्य में प्रमुख है।

ज्ञानमीमांसा

ज्ञान की प्रकृति, मानव अनुभव की सीमाएँ और चेतना के आंतरिक द्वंद्वों पर उनके विचार उनके लेखन को दार्शनिक गहराई देते हैं।

प्रकृति और सौंदर्य-बोध

प्रकृति के प्रति गहरा लगाव और उसके सूक्ष्म सौंदर्य का चित्रण उनकी कविताओं की एक प्रमुख विशेषता है।

भौतिकवाद और अध्यात्म का समन्वय

उन्होंने आधुनिकता और भारतीय सांस्कृतिक-आध्यात्मिक मूल्यों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया।

बौद्धिकता और दार्शनिकता

उनकी भाषा में गहन बौद्धिकता और दार्शनिक चिंतन का पुट मिलता है, जो पाठक को विचारोत्तेजक अनुभव प्रदान करता है।

विरासत: हिंदी साहित्य पर अमिट छाप

अज्ञेय

अज्ञेय जी ने हिंदी साहित्य में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। उन्हें ‘प्रयोगवाद’ और ‘नई कविता’ का प्रवर्तक माना जाता है। उनकी ‘सप्तक’ श्रृंखला ने हिंदी कविता को एक नया आयाम दिया। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978, ‘कितनी नावों में कितनी बार’ के लिए) और साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964, ‘आँगन के पार द्वार’ के लिए) जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। अज्ञेय जी का योगदान आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

सन्दर्भ

अज्ञेय जी के जीवन और कृतित्व से संबंधित जानकारी निम्नलिखित स्रोतों से संकलित की गई है:

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By विक्रम प्रताप

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